कर्नाटक के विजयनगर जिले में तुंगभद्र बांध का एक गेट बह गया. इससे पूरे इलाके में तबाही का खतरा बढ़ गया है. कृष्णा नदी के किनारे रहने वाले लोगों को सतर्क रहने की चेतावनी दी गई है. उधर, आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. प्रशासन कह रहा कि लगभग 35,000 क्यूसेक निकल चुका है, और कुल 48,000 क्यूसेक पानी बांध से और निकाला जाएगा. इसलिए कभी भी इससे निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है. क्योंकि बांध को बचाना है, इसलिए पानी निकालना जरूरी है. मगर सवाल ये है कि 70 साल से खड़ा तुंगभद्रा बांध आखिर टूटा कैसे?
कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिव कुमार ने कहा, बांध को ज्यादा नुकसान न पहुंचे, इसलिए सभी गेट खोल दिए गए हैं. पानी निकाला जा रहा है. टूटे हुए गेट की मरम्मत करने के लिए दो कंपनियों से बातचीत चल रही है. अब तक 38,000 क्यूसेक पानी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए छोड़ा जा चुका है. न्यूज18 ने बांध की मरम्मत को लेकर जो प्रयास किए जा रहे हैं, उसके बारे में विस्तार से जानकारी जुटाई है. पता लगाया है कि आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे?
पहले जानिए तुंगभद्रा बांध के बारे में
तुंगभद्रा बांध का प्लान मद्रास प्रेसीडेंसी के एक ब्रिटिश इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने 1860 में बनाया था. वे चाहते थे कि इससे इलाके में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाए. बिजली का उत्पादन किया जाए और साथ में बाढ़ रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाए. हालांकि, हैदराबाद और मद्रास प्रेसीडेंसी ने मिलकर 1949 में इसका निर्माण शुरू किया और चार साल में बनकर ये तैयार हुआ. तुंगभद्रा नदी पर बने इस बांध को तब पंपा सागर नाम दिया गया. तुंगभद्रा और केरल में मुल्लापेरियार बांध देश के दो मात्र ऐसे जलाशय हैं जिन्हें मिट्टी और चूना पत्थर के मिश्रण से तैयार किया गया है.
फिर हुआ क्या…
शनिवार रात तुंगभद्रा नदी में 10 गेट से 40,000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा था. तभी रात करीब 12.50 बजे 19वां द्वार टूट गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जिस चेन लिंंक से इसे कंट्रोल किया जा रहा था, गेट पर पानी का भारी दबाव होने की वजह से वह चेन लिंंक टूट गई. जब लगा कि बांध टूट जाएगा, तो फिर दबाव कम करने के लिए सभी 33 गेट खोल दिए गए. पानी बहुत तेज़ी से क्रेस्ट गेट से बाहर निकल रहा है.
क्रेस्ट गेट होता क्या है?
आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह क्रेस्ट गेट आखिर होता क्या है? दरअसल, क्रेस्ट गेट को स्पिलवे गेट के नाम से जाना जाता है. यह बांध में ओवर फ्लो यानी जल स्तर को कंट्रोल करता है. बांध का जलस्तर 20 फीट कम होना चाहिए. बीजिंग IWHR कॉर्पोरेशन के अनुसार, क्रेस्ट गेट में एक फ्लैप लगा होता है. आमतौर पर यह हाइड्रोलिक से चलता है. इसे देखकर ही पता चलता है कि बांध में पानी ज्यादा भर गया है या कम है. लेकिन दावा किया जा रहा कि इस बार क्रेस्ट गेट के संकेतों की अनदेखी की गई. जिससे पानी ज्यादा भर गया और यह बांध टूट गया.
अब आगे क्या होगा?
एक्सपर्ट के मुताबिक, सबसे पहले तो बांध में भरा 60 फीसदी पानी निकालना होगा. इसके बाद मरम्मत शुरू होगी. टूटे हुए गेट पर दबाव कम करने के लिए अन्य गेटों से पानी का बहाव बढ़ाना होगा. इसके बाद नए क्रेस्ट गेट का निर्माण किया जाएगा. शायद इसे ठीक करने में चार दिन या उससे ज्यादा समय लग जाए. बीजेपी ने कर्नाटक सरकार पर लापरवाही और पानी की बर्बादी का आरोप लगाया. विपक्ष के नेता आर अशोक ने कहा, उनके लिए पार्टी का कल्याण लोगों से ज्यादा महत्वपूर्ण है.
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FIRST PUBLISHED : August 12, 2024, 20:28 IST