Bhadralok In West Bengal Politics: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और उसकी हत्या से पूरा देश हिला हुआ है. इस वीभत्स घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. स्थिति यह है कि बीते करीब 12 साल के शासन में पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी किसी बड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह इस घटना को लेकर बंगाल के भद्रलोक का आहत होना है.
दरअलस, आरजी कर की घटना इतनी घिनौनी है कि कोई भी इंसान इसकी आलोचना किए बिना नहीं रह सकता. हर एक तर्क इस घटना के आगे बौना साबित हो रहा है. कोलकात पुलिस से लेकर ममता बनर्जी की सरकार हर कोई सवालों के घेरे में हैं. अब सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी को इस घटना की राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी? क्या इस घटना ने उनके कोर वोट बैंक में सेंधमारी कर दी है? ये कुछ ऐसे सवाल है जिस पर हर तरफ चर्चा हो रही है.
बंगाली संस्कृति में एक प्रभावी वर्ग है भद्रलोक. यह कोई जाति या धर्म का वर्ग नहीं बल्कि एक खास तरह की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक हैसियत रखने वाले लोगों का समूह है. हालांकि इसमें बहुलता ब्राह्मण और कायस्त जाति के लोगों की है. बंगाली कला और संस्कृति की समझ रहने वाले, अमीर, अंग्रेजी में पढ़े लिखे उच्च हैसियत रखने वाले लोगों को भद्रलोक की श्रेणी में रखा जाता है. इसमें राजनेता से लेकर कलाकार, शिक्षाविद्, साहित्यकार और नौकरशाह शामिल हैं.
अंग्रेजी शासन और भद्रलोक
अंग्रेजी शासन के दौरान पश्चिम बंगाल और खासकर कोलकाता सत्ता का एक प्रमुख केंद्र था. इस दौरान इस पूरे इलाके में अंग्रेजी शिक्षा का खूब प्रचार प्रसार हुआ और समाज में खास हैसियत को महत्व मिला. उस दौर से ही बंगाल में यह भद्रलोक की संस्कृति चली आ रही है. आमतौर पर यह भद्रलोक सत्ता के करीब रहा है. सत्ता भी इस भद्रलोक को खास महत्व देती है. आप इस भद्रलोक के प्रभाव को इस तथ्य से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में आजादी के बाद जितने भी मुख्यमंत्री बने वे सभी इसी भद्रलोक संस्कृति से थे. यानी वे अच्छे खासे पढ़े-लिखे, अंग्रेजी संस्कृति के करीब, दिखने में आम बंगालियों से अलग बेहद सलीकेदार थे.
पश्चिम बंगाल की राजनीति और भद्रलोक के संबंध को रेखांकित करें तो आप पाएंगे कि वे हर समय सत्ता के करीब रहे. लेकिन जब उन्होंने सत्ता से दूरी बनाई तो राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया. यही कारण था कि आजादी के बाद राज्य में कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में यह भद्रलोक था. फिर पहले सीएम बिधानचंद्र राय की बात हो या फिर 1975 में देश में लगे आपातकाल के वक्त राज्य के सीएम रहे सिद्धार्थ शंकर रे हों. ये सभी काफी पढ़े लिखे विद्धान राजनेता माने जाते थे. लेकिन, 1975 के आपातकाल के आसपास के समय सिद्धार्थ शंकर रे से भद्रलोक आहत होने लगा. वह वामपंथ की ओर झुका और राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया.
वामपंथ के साथ भद्रलोक
फिर वामपंथी के जनक ज्योति बसु के शासन काल में इस भद्रलोक की खूब पूछ हुई. बसु की विरासत संभालने वाले बुद्धादेब भट्टाचार्य की गिनती अव्वल दर्जे के भद्रलोक में होती है. वह साहित्य कला संस्कृति में खास रुचि रखने वाले बंगाली बाबू थे. उनके शासन काल में भद्रलोक उनके काफी करीब रहा. लेकिन, 2007-2008 में नंदीग्राम और सिंगुर की घटना ने इस भद्रलोक को खासा नाराज कर दिया. उस वक्त के कई बड़े बुद्धिजीवियों ने वाम सरकार की तीखी आलोचना की. इसमें महाश्वेता देवी से जैसी हस्तियां भी शामिल थीं. बुद्धिजीवियों की इस नाराजगी ने वामपंथी नींव हिला दी और राज्य से वामपंथ की सत्ता उखड़ गई.
उस वक्त से लेकर अब तक इस भद्रलोक का रूझान टीएमसी की तरफ रहा है. लेकिन, आरजी कर की घटना ने इसे विचलित कर दिया है. दरअसल, इस भद्रलोक का बंगाली समाज पर गहरा प्रभाव है. वह समाज में ओपिनियन बनाने का काम करता है. बॉलीवुड स्टार मिथुन चक्रबर्ती लेकर क्रिकेट स्टार रहे सौरभ गांगुली हो या फिर राज्य के बड़े-बड़े साहित्यकार और शिक्षाविद् हर किसी ने इस आरजी कर की घटना और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया है. ऐसे में यह आशंका निराधार नहीं है कि भद्रलोक की यह नाराजगी कहीं ममता सरकार की उल्टी गिनती न शुरू करा दे.
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FIRST PUBLISHED : August 21, 2024, 20:51 IST