मधुपर्णा दास
कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं. इस बीच सोशल मीडिया में कई तरह के भ्रामक दावे भी किए जा रहे हैं. एक दावे में कहा जा रहा कि लेडी डॉक्टर की बॉडी में 150 ग्राम या 150 एमएल स्पर्म मिला है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. असली पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, जिस 150 ग्राम की बात की जा रही है, वो स्पर्म नहीं, बल्कि पीड़िता के यूटरस और अन्य अंगों का वजन है.
इस बारे में न्यूज18 ने सेंट्रल फोरेंसिक लैब में काम कर चुके कई वरिष्ठ फोरेंसिक एक्सपर्ट से बात की. एक सीनियर फोरेंसिक एक्सपर्ट ने बताया कि डॉक्टर जब भी किसी का पोस्टमार्टम करते हैं, तो अंगों का वजन जरूर दर्ज करते हैं. इस मामले में जिस 150 ग्राम या मिलीग्राम की बात की जा रही है, दरअसल वह कोई स्पर्म की तरह तरल पदार्थ नहीं है. उन्होंने कहा, मैंने उस बच्ची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखी है. पोस्टमार्टम तीन डॉक्टरों के एक पैनल ने किया था. इनमें कम से कम दो महिला फोरेंसिक साइंंटिस्ट और डॉक्टर शामिल थीं. आरजी कर मेडिकल कॉलेज के दो डॉक्टर और एनआरएस मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर भी उस वक्त मौजूद थे.
फोरेंसिक एक्सपर्ट ने मौके पर क्या देखा
घटना के लगभग पांच घंटे बाद फोरेंसिक टीम जब मौके पर पहुंची, तो वहां पड़ा तरल पदार्थ एक धब्बे जैसा बन गया था. एक्सपर्ट की टीम ने वहां फ्लोर से कुछ सैंपल उठाए. वहां कोई भी स्पर्म की तरह तरल पदार्थ नहीं था, क्योंकि यह पहले ही जम चुका था और धब्बे में बदल चुका था. फोरेंसिक टीम ने जो सैंपल इकट्ठा किए, उनमें ब्लड, स्पर्म और स्वाब शामिल है. घटना के तीन दिन बाद 12 अगस्त को इन सैंपल को सेंट्रल फोरेंसिक लैब में जमा किया गया. इतनी देर इसलिए लगी, क्योंकि सेंट्रल फोरेंसिक लैब में जमा करने की एक खास प्रक्रिया है. कई प्रोटोकॉल से गुजरना पड़ता है.
डीएनए प्रोफाइलिंंग से क्या पता चलेगा
सेंट्रल फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट अगले बुधवार तक आने की उम्मीद है. इसके बाद सारी जानकारी सीबीआई को भेज दी जाएगी. इस रिपोर्ट में अपराध में शामिल शख्स की पहचान करने के लिए विस्तृत डीएनए प्रोफाइलिंंग होगी. घटना के वक्त कितने लोग मौजूद थे, इसका भी डीएनए से पता चल जाएगा. न्यूज18 ने सेंट्रल फोरेंसि लैब में काम कर चुके कई वरिष्ठ फोरेंसिक एक्सपर्ट से बात की. इनमें कई सीनियर आईपीएस ऑफिसर भी रह चुके हैं और रेप-मर्डर जैसे संवेदनशील एवं जटिल मामलों का पता लगाने में माहिर माने जाते हैं. उनके अनुसार, यूटरस वो अंग है, जो स्पर्म जैसे द्रव को लंबे वक्त तक सुरक्षित रखता है. एक बार जब इसे इकट्ठा कर लिया जाता है और डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए मशीन के अंदर डाल दिया जाता है, तो कोई भी बाहरी प्रभाव नहीं हो सकता. प्रोफाइलिंग में समय लगता है, लेकिन यह लगभग सटीक जानकारी देता है.
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FIRST PUBLISHED : August 16, 2024, 23:07 IST