लिवर फेल होने से बचा सकती है 100 रुपये की जांच, AIIMS के डॉक्‍टरों ने बताया, किसे ज्‍यादा जरूरत


ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्‍ली में लगभग रोजाना लिवर फेल्‍योर जैसी गंभीर बीमारी के मरीज पहुंच रहे हैं. इनमें सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि छोटे बच्‍चे भी शामिल हैं जो एक्‍यूट या क्रॉनिक लिवर डिजीज से जूझ रहे हैं. डॉक्‍टरों की मानें तो बड़े लोगों में हेपेटाइटिस बी या सी होने के कारण अलग होते हैं लेकिन छोटे बच्‍चों में ये दोनों बीमारियां अक्‍सर मां से ट्रासमिट होती हैं. देखा जा रहा है कि प्रेग्‍नेंसी में हेपेटाइटिस के किसी भी टाइप से ग्रस्‍त मां से यह बीमारी बच्‍चे में पहुंचना बेहद कॉमन है.

एम्‍स के गैस्‍ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि डब्‍ल्‍यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार करीब 5 करोड़ के आसपास लोग आज भारत में हेपेटाइटिस बी या हेपटाइटिस सी से ग्रस्‍त हैं. हालांकि यह बीमारी अचानक पैदा नहीं होती. यह पहले संक्रमण होता है और फिर कई सालों में पनपकर यह बीमारी का रूप लेती है, जो या तो पूरी तरह ठीक नहीं होती, या जिसका लंबा इलाज चलता है. हालांकि बेहद सस्‍ती सिर्फ दो जांचें करवाकर इस गंभीर बीमारी को पहले ही रोका जा सकता है.

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कैसे फैलता है हेपेटाइटिस
. हेपेटाइटिस ए और ई- संक्रमित या गंदे पानी से
. हेपेटाइटिस सी- गर्भवती मां से बच्‍चे में
. हेपेटाइटिस बी – ब्‍लड, नीडल या अनसेफ सेक्‍सुअल प्रेक्टिसेज से एक दूसरे में

हेपेटाइटिस बी और सी ज्‍यादा खतरनाक
एम्‍स के गैस्‍ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. प्रमोद गर्ग कहते हैं कि हेपेटाइटिस के सभी टाइप्‍स में से बी और सी ज्‍यादा खतरनाक हैं, जबकि संक्रमण दर ए और ई की ज्‍यादा है. बी और सी इसलिए भी खराब हैं क्‍योंकि हेपे-बी का परमानेंट इलाज नहीं है. वहीं हेपेटाइटिस सी गर्भवती मां से ही बच्‍चे में प्रवेश कर जाता है और फिर बच्‍चे में गंभीर लिवर रोगों का कारण बन जाता है.

हेपेटाइटिस बी नहीं होता कभी ठीक
एम्‍स के ही गैस्‍ट्रोएंट्रोलॉजी एंड ह्यूमन न्‍यूट्रीशन विभाग में प्रोफेसर डॉ. शालीमार कहते हैं कि हेपेटाइटिस बी कभी भी पूरी तरह ठीक नहीं होती है. यह बीमारी अगर एक बार लिवर में चली जाए तो जीवन भर बनी रहती है. हालांकि दवाओं के माध्‍यम से इसे कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता. इसलिए जरूरी है कि इसके प्रिवेंशन पर फोकस किया जाए. वहीं हेपेटाइटिस सी के लिए भी लंबा इलाज चलता है.

बचाव के लिए कराएं ये दो सस्‍ते टेस्‍ट
डॉ. शालीमार कहते हैं कि भारत में हेपेटाइटिस बी के लिए तो सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम में वैक्‍सीन लगाई जाती है लेकिन सी के लिए टीका सिर्फ प्राइवेट रूप से ही टीका लगवा सकते हैं, और लोग नहीं लगवाते हैं. ऐसे में इन दोनों बीमारियों से बचाव बेहद जरूरी है. अगर संक्रमण के स्‍तर पर ही बीमारी का पता चल जाए तो बीमारी से बचा जा सकता है. इसके लिए 100 रुपये में होने वाली ये दो जांचें व्‍यक्ति अपने जीवन में एक बार जरूर कराएं. ये है हेपेटाइटिस बी का एंटीजन और हेपेटाइटिस सी का एंटीबॉडी टेस्‍ट.

प्रेग्‍नेंट महिलाएं खासतौर पर दें ध्‍यान
डॉ. शालीमार कहते हैं कि प्रेग्‍नेंट महिलाएं अपने डॉक्‍टर से बोलकर भी इन जांचों को करा सकती हैं. ये महज 100 रुपये में हो जाती हैं और इससे पता चल जाता है कि मां को हेपेटाइटिस की बीमारी तो नहीं है, ऐसे में गर्भ में मौजूद बच्‍चे को बचाया जा सकता है.

सिर्फ खानी है एक टैबलेट
एम्‍स के ही गैस्‍ट्रोएंट्रोलॉजी एंड ह्यूमन न्‍यूट्रीशन विभाग में प्रोफेसर डॉ. शालीमार कहते हैं कि मां से बच्‍चे में हेपेटाइटिस की बीमारी न पहुंचे, इसके लिए रोजाना सिर्फ एक टैबलेट खानी होती है. इस टैबलेट से मां से वायरस बच्‍चे में नहीं पहुंचता और मां की बीमारी भी कंट्रोल में रहती है. ऐसा करने से न केवल इस इन्‍फेक्‍शन को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है बल्कि बीमारी की इस चेन को भी तोड़ा जा सकता है. वहीं मां से बच्‍चे में जाने वाली बीमारी हेपेटाइटिस सी का इलाज 12 हफ्ते यानि 3 महीने का है. लगातार चलने वाले इस इलाज में बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है.

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