आरजेडी में भगदड़ की बातें और चर्चा में हैं लालू यादव के राम और श्याम!


हाइलाइट्स

लालू प्रसाद यादव की राम और श्याम की जोड़ी के चर्चे होते थे राजनीति की गलियारों में. रामकृपाल यादव ने पाटलिपुत्र सीट तो फुलवारी के लिए श्याम रजक ने छोड़ दिया राजद.JDU की ओर से राजद पर तंज तो भाजपा एमएलसी बोले-लालू की पार्टी में मचेगी भगदड़.

पटना. मैं शतरंज का शौकीन नहीं इसलिए धोखा खा गया…आप मोहरे चल रहे थे मैं रिश्तेदारी निभा रहा था…अपने दिल का ये दर्द उस शख्स ने बयां किया है जो आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी कहे जाते रहे. राष्ट्रीय जनता दल के महासचिव श्याम राजक ने राजद की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और शायराना अंदाज में सियासी तीर छोड़ दिये. यहां तीर का जिक्र इसलिए कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाटेड का चुनाव चिन्ह भी तीर है और अब उनके जदयू में जाने की अटकलें हैं. वैसे बिहार में कभी राम और श्याम की जोड़ी चर्चित थी. राम का मतलब रामकृपाल यादव से और श्याम मतलब श्याम रजक से है. लालू यादव के लेफ्ट और राइट कहे जाने वाले अब तो राम और श्याम दोनों ही आरजेडी प्रमुख से जुदा हो गए हैं.

श्याम रजक के आरोपों को सही बताते हुए मंत्री मदन सहनी ने कहा कि यह राष्ट्रीय जनता दल में अति पिछड़ों और दलितों का कोई गुजारा नहीं है और न ही मान सम्मान है. श्याम रजक राजद में चले गए थे तो हमको लोगों को लगता था कि गलत निर्णय था. वहीं, राजद की ओर से शक्ति यादव ने कहा कि वह अपने पुराने दल में जाएंगे यह सब जानते हैं. लेकिन राजद को किसी के आने जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. लालू यादव और तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति को नया रूप दिया है, उस दलदल (जदयू) में जाने की नीयति या उनका फैसला है तो इस पर कुछ नहीं कहना है. उधर, श्याम रजक के राजद छोड़ने पर भाजपा के नेताओं का कहना है कि राजद में अभी भगदड़ मचने वाली है. बीजेपी एमएलसी जीवन कुमार ने कहा कि वहां पर भगदड़ मचने वाली है.

आरजेडी में मिली उपेक्षा या महत्वाकांक्षा ?
बता दें कि दलित समाज से आने वाले श्याम रजक की गिनती बिहार के बड़े दलित नेताओं में होती है. वर्ष 1995 से 2015 तक 6 बार विधायक बने श्याम रजक लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद छोड़ श्याम रजक ने जदयू का दामन थाम लिया था. लेकिन, 2020 के चुनाव से पहले जेडीयू आरजेडी में वापसी कर ली. हालांकि, राजद में ना तो उन्हें विधानसभा का टिकट मिला और न लोकसभा का. विधान परिषद के सदस्य भी नहीं बनाए गए और न ही राज्यसभा भेजा गया. जानकार बताते हैं कि राजद में लगातार हो रही उपेक्षा की वजह से उन्होंने आरजेडी छोड़ दी.

श्याम रजक की राजनीतिक यात्रा भी जान लें
श्याम रजक की राजनीतिक यात्रा के बारे में बात करें तो 1995 में आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते भी. लगातार 2005 में लालू परिवार बिहार की सत्ता से बाहर हो गया. ऐसे में 2010 का चुनाव होने वाला था और 2010 के विधानसभा चुनाव से पहले 2009 में ही श्याम रजक ने आरजेडी छोड़ दी और जदयू में शामिल हो गए. 2010 नीतीश कुमार ने श्याम रजक को मंत्री बनाया. लेकिन, कहानी में ट्विस्ट आया साल 2015 में. इस वर्ष विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर महागठबंधन बनाया और विधानसभा में प्रचंड जीत दर्ज की. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन जदयू में होते हुए भी श्याम रजक को मंत्री नहीं बनाया गया. आरोप लगता है कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद के दबाव में श्याम रजक को नीतीश कुमार ने मंत्री नहीं बनाया.

क्या नीतीश कुमार की जेडीयू में जाएंगे श्याम?
कारण चाहे जो भी रहा धीरे-धीरे श्याम रजक सीएम नीतीश कुमार से नाराज हो गए और मुखरता से बोलने लगे. टीम नीतीश के खिलाफ कई बयान दिए और 2020 में विधानसभा चुनाव से पहले श्याम रजक ने फिर जदयू छोड़ दिया और एक बार फिर से आरजेडी में शामिल हो गए. इस बार राजद में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो पहले मिला करता था. वह किसी सदन का सदस्य बनने के लिए तरसते रहे, लेकिन उन्हें आरजेडी का महासचिव बनाकर छोड़ दिया गया. इसी बात से वह बेहद नाराज बताये जाते थे और दुखी थे. माना जा रहा है कि राजद में लगातार हो रही है अपेक्षा से ही नाराज चल रहे श्याम रजक में 22 अगस्त 2024 को राजद छोड़ दिया. कहा जा रहा है कि अब वह फिर नीतीश कुमार के जदयू में शामिल होंगे.

टूट गई लालू यादव के राम और श्याम की जोड़ी
बता दें कि बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में राम और श्याम की जोड़ी मशहूर थी. ऐसा इसलिए क्योंकि लालू प्रसाद यादव सत्ता के शीर्ष पर थे तो लालू यादव के दायें और बांये रामकृपाल यादव और श्याम रजक रहते थे. संगठन से लेकर सरकार तक में इनकी बड़ी दखल थी. रामकृपाल यादव को लालू यादव के हनुमान कहे जाते थे. इनकी जोड़ी राजनीतिक गलियारों में राम और श्याम के नाम से चर्चा में रहती थी. लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं तो श्याम रजक ने 2009 में राजद छोड़ दिया. इसके बाद राम कृपाल यादव भी राजद में अपमानित महसूस करने लगे और उन्होंने 2014 में आरजेडी छोड़ और बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि, श्याम रजक ने फिर 2020 में राजद जॉइन कर ली, लेकिन चार साल बाद फिर लालू यादव से अलग हो गए.

तेजस्वी यादव की राजनीति की अलग प्राथमिकता
राजनीति के जानकार कहते हैं कि इसका कारण लालू यादव नहीं बल्कि तेजस्वी यादव हैं. दरअसल, तेजस्वी यादव अपनी राजनीति अलग तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं और युवाओं पर भरोसा करते हैं. वह लगातार युवा चेहरों को लाने की बात कहते हैं. अब राम कृपाल यादव तो भाजपा में हैं ही, लेकिन श्याम रजक के लिए भी कोई खास स्कोप तेजस्वी के नेतृत्व में बचा नहीं दिखता है. दरअसल, ये दोनों ही 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं बावजूद इसके राजनीति में रहना चाहते हैं. वहीं, तेजस्वी यादव राजद में सब कुछ तय कर रहे हैं और युवाओं को तरजीह दे रहे हैं, ऐसे में श्याम रजक या राम कृपाल जैसे नेताओं के लिए बहुत गुंजाइश नहीं बच जाती है.

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