देश से लेकर दुनिया भर में इसका कल्चर बढ़ चुका हैइसके लिए वे काफी पैसा भी खर्च करते हैंडार्क टूरिज्म का बाजार बहुत बड़ा, तेजी से बढ़ रहा है
केरल के वायनाड में लैंडस्लाइड हुई. जिसमें 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. जबकि कई लोग मलबे के बीच जिंदा मिल रहे हैं. बीच केरल पुलिस ने सोशल मीडिया पर चेतावनी जारी की है. पुलिस का कहना है कि डार्क टूरिज्म पर आने वाले लोग यहां घूमने-फिरने ना आएं. इससे राहत कार्य में रुकावट आ रही है. अब सवाल ये है कि आखिर ये डार्क टूरिज्म है क्या? जिसे लेकर केरल पुलिस को चेतावनी जारी करनी पड़ गई. आज इस वीडियो में बात करेंगे डार्क टूरिज्म की और इससे जुड़े कुछ फैक्ट्स की….
डार्क टूरिज्म… जिसे ब्लैक टूरिज्म, थानाटूरिज्म, मॉर्बिड टूरिज्म और ग्रीफ टूरिज्म भी कहा जाता है. ये उन जगहों पर होता है, जहां किसी किस्म की त्रासदी हो चुकी हो. डार्क टूरिज्म सुनने में भले ही आपको नया लग रहा हो. लेकिन देश से लेकर दुनिया भर में इसका कल्चर बढ़ चुका है.
इसके लिए काफी पैसा भी खर्च करते हैं
रिपोर्ट्स की माने तो जब लोग समुद्र-पहाड़ या हरियाली की जगह उन इलाकों या इमारतों को देखने जाने लगें, जहां कोई हादसा, प्राकृतिक आपदा या कोई मानव निर्मित दुर्घटना हुई हो या फिर जहां नरसंहार या भारी संख्या में मौतें हुई हों, उसे डार्क टूरिज्म कहा जाता है. डार्क टूरिज्म पर जाने वाले लोगों का मानना है कि वे उन जगहों पर जाकर उन हादसों में खुद को शामिल कर पाते हैं. इसके लिए वे काफी पैसा भी खर्च करते हैं, ताकि हादसे वाली जगह को महसूस कर सकें.
वायनाड लैंडस्लाइड में बड़ी तादाद में लोग मरे और तबाही हुई. गांव के गांव तबाह हो गए. (पीटीआई)
डार्क टूरिज्म का भी है बढ़ता हुआ बाजार
मार्केट पर नजर रखने वाली साइट फ्यूचर मार्केटिंग के मुताबिक, डार्क टूरिज्म का बाजार बहुत बड़ा है. और ये लगातार तेजी से बढ़ रहा है. अनुमान है कि डार्क टूरिज्म का बाजार अगले 10 साल में बढ़कर 41 बिलियन डॉलर यानी 3 लाख 4 हजार करोड़ रुपए के पार चला जाएगा.
साल 2021 में इंटरनेशनल हॉस्पिटैलिटी रिव्यू में छपी रिपोर्ट कहती है कि लोग वैसे तो इन जगहों पर कनेक्शन खोजने जाते हैं या उस दर्द को महसूस करने पहुंचते हैं लेकिन ज्यादातर टूरिस्ट के लिए ये सिर्फ एक थ्रिल है.. जैसे वे कोई खतरनाक काम करने पहुंचे हों.
कहां से डार्क टूरिज्म शब्द
अब सवाल ये है कि आखिर डार्क टूरिज्म शब्द आया कैसे? इसकी खोज किसने की थी? दरअसल, डार्क टूरिज्म शब्द साल 1996 में स्कॉटलैंड की ग्लासगो कैलेडोनियन यूनिवर्सिटी के जे. जॉन लेनन और मैल्कम फोले ने खोजा था. इसमें बर्बरता से हुई मौतों की साइटों के अलावा भयंकर कुदरती आपदा के बाद मची तबाही वाली साइट पर जाना भी शामिल है.
दुनिया की कुछ खास जगहें
रिपोर्ट्स की माने तो दुनियाभर में डार्क टूरिज्म के लिए कुछ जगहें खास हैं. इनमें से एक है पोलैंड में ऑश्वित्ज कंसन्ट्रेशन कैंप. नाजी हुकूमत के दौर में ये सबसे बड़ा नजरबंदी कैंप था, जहां यहूदी कैद में रखकर मारे गए थे. बहुत से लोग गैस चैंबर में डालकर मारे गए तो बहुतों की जान भूख और ठंड से चली गई.
ऑश्वित्ज में हिटलर की हैवानियत का सिलसिला कई साल चला. आज भी इस जगह पर सालाना ढाई लाख से ज्यादा टूरिस्ट पहुंचते हैं. इसके अलावा जापान का हिरोशिमा डार्क टूरिज्म की खास जगहों में शामिल है. हिरोशिमा में 1945 में न्यूक्लियर बम गिरा था. जिसमें 80 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.
हालांकि, इसके बाद भी तबाही रुकी नहीं. कुछ सालों बाद यहां पीस मैमोरियल पार्क बना, जिसे देखने दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं. डार्क टूरिज्म की खास जगहों में अमेरिका वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, यूक्रेन का चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र, रवांडा की नरसंहार की साइट मुरम्बी नरसंहार स्मारक और इटली का पोम्पई शहर शामिल हैं.
भारत में भी इसका चलन
दिलचस्प बात ये है कि ये चलत दुनिया ही नहीं भारत में भी है. भारत में ऐसी कई जगहें हैं, जहां लोग डार्क टूरिज्म के लिए पहुंचते हैं. जैसे – जलियांवाला बाग, अंडमान की सेल्युलर जेल, उत्तराखंड की रूपकुंड झील और जैलसमेर का कुलधरा गांव, जो रातोरात रहस्यमयी कारणों से उजड़ गया था.
हालांकि पिछले कुछ सालों में टूरिज्म के इस तरीके का विरोध भी होने लगा है. लोगों का मानना है कि पर्यटकों के इस तरह पहुंचने से स्थानीय आहत होते हैं. या टूरिस्ट उन्हें आहत कर सकते हैं. इसके अलावा प्राकृतिक आपदा झेल चुके इलाके काफी संवेदनशील होते हैं. माना जाता है कि अचानक भीड़भाड़ बढ़ने से फिर से आपदा का डर बना रहता है.
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FIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 13:02 IST