9 AUG 1947: एक 'हिंदू' का गीत बना पाक का कौमी तराना, गांधी के लिखा इस्‍तीफा…


August 09, 1947: मोहम्‍मद अली जिन्‍ना का आज पाकिस्‍तान में दूसरा दिन था. अपने बंगले में बैठे जिन्‍ना पाकिस्‍तान के नए स्‍वरूप को लेकर सोच रहे थे. इसी बीच, उन्‍हें ख्‍याल आया कि पांच दिनों बाद उनके ख्‍वाबों का पाकिस्‍तान वजूद में आने वाला था और अभी तक न ही पाकिस्‍तान के झंडे की चर्चा हुई थी, न ही कौमी तराने (राष्‍ट्रगीत) को लेकर किसी से कोई बात हुई थी. इसी बीच, उनके दिमाग में एक नाम कौंधा और वह नाम था लाहौर के पंजाबी हिंदू जगन्‍नाथ आजाद का.

दरअसल, दिल्‍ली में रहते हुए जिन्‍ना ने जगन्‍नाथ आजाद की लिखी कई नज़्म पढ़ी थीं. इन नज़्मों को पढ़ने के बाद जिन्‍ना जगन्‍नाथ आजाद की उर्दू जुबान पर पकड़ के कायल हो गए थे. जगन्‍नाथ आजाद की नज्‍मों को पढ़ने के बाद जिन्‍ना के मन में तब ख्‍याल आया था कि जब भी पाकिस्‍तान का कौमी तराना लिखा जाएगा, वह जगन्‍नाथ आजाद को एक मौका जरूर देंगे. आज वह दिन आ गया था. मोहम्‍मद अली जिन्‍ना ने जगन्‍नाथ आजाद को बुलाने के बारे में सोचा और फिर ठिठक कर अचानक रुक गए.

दरअसल, जिन्‍ना के दिमाग में ख्‍याल आया कि जगन्‍नाथ आजाद एक हिंदू काफिर है. ऐसे में, उससे कौमी तराना लिखवाना ठीक रहेगा. लेकिन तभी उनके दिगाम में एक दूसरा ख्‍याल आया कि जगन्‍नाथ आजाद काफिर है, तो उससे मुझे क्या? अगर कोई बढ़िया नज्‍़म उर्दू में लिखकर दे दे, तो मुझे और क्या चाहिए? इसी ख्‍याल के साथ जिन्‍ना ने जगन्‍नाथ आजाद के पास मिलने का बुलावा भेज दिया. वहीं, बुलावा मिलते ही जगन्‍नाथ आजाद तय समय से पहले ही जिन्‍ना के बंगले पर पहुंच गए.

जगन्‍नाथ आजाद पर जैसे ही जिन्‍ना की पहली नजर पड़ी, उनका माथा सिकन से कुछ पलों के लिए सिमट गया. दरअसल, जिन्‍ना से सोचा था कि इतनी बेहतरीन उर्दू की नज्‍़म लिखने वाला कोई 50 साल का अधेड़ होगा, लेकिन यह तो बमुश्किल 30 साल का नौजवान है. खैर, हालचाल लेने के बाद जिन्‍ना ने आजाद से पूछा- क्‍या उनके पास कोई पाकिस्‍तान के कौमी तराने लायक कोई नज्‍़म है. हालांकि आजाद के पास उस समय कोई ऐसी नज्‍म नहीं थी, लेकिन उनके तसव्वुर (कल्‍पना) में आई कुछ लाइनों को बोल दिया.

ये लाइनें थीं…

ऐ सरजमीं-ए-पाक
जरें तेरे हैं आज
सितारों से ताबनाक,
रोशन है कहकशां से
कही आज तेरी खाक
तुन्दी-ए-हसदां पे
गालिब हैं तेरा सवाक,
दामन वो सिल गया है
जो था मुद्दतों से चाक
ऐ सरजमीं-ए-पाक!

इन लाइनों को सुनने के बाद जिन्‍ना के मुंह से सिर्फ एक बात निकली, बस… बस, यही चाहिए था मुझे. जिन्‍ना को यह तराना इस कदर पसंद आया कि पाकिस्‍तान का कौमी तराना लिखने की जिम्‍मेदारी एक पंजाबी हिंदू को सौंप दी. और इस तरह वतन-ए-पाकिस्‍तान का कौमी तराना एक हिंदू ने लिखा.

जब सीएम ने महात्‍मा गांधी से लिखवाया अपना त्‍यागपत्र और फिर…
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किताब ‘वे पंद्रह दिन’ में महात्‍मा गांधी और मध्‍य प्रांत के पहले मुख्‍यमंत्री डॉ. नारायण भास्कर खरे से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया गया है. इसमें बताया गया है कि डॉ. खरे को महात्‍मा गांधी से जुड़ी बहुत सी बातें पसंद नहीं थीं, जिसमें मुस्लिम लीग के प्रति उनका झुकाव भी शामिल था. इन बातों को अक्‍सर डॉ. खरे सार्वजनिक मंच से बोल दिया करते थे. डॉ. खरे की यह आदत महात्‍मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू को बिल्‍कुल पसंद नहीं थी. ऐसे में, महात्‍मा गांधी ने अपने सेवाग्राम आश्रम में डॉ. नारायण भास्कर खरे को बुलाया और मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देने के लिए कह दिया.

महात्‍मा गांधी की बात सुनने के बाद डॉ. खरे ने बहत सहज तरीके से कहा- ‘मेरी अभी की मनःस्थिति ठीक नहीं है, इसलिए इस्तीफे का मसौदा आप ही लिख दीजिए.’ डॉ. खरे ने यह बात इतनी सरलता से कही थी कि महात्‍मा गांधी इस्‍तीफे का मसौदा लिखने के लिए तैयार हो गए. महात्‍मा गांधी ने तुरंत अपने हाथों से इस्‍तीफा लिखा और हस्‍ताक्षर करने के लिए डॉ. खरे की तरफ बढ़ा दिया.

डॉ. खरे ने महात्‍मा गांधी से इस्‍तीफा लिया और उस पर बिना हस्‍ताक्षर किए जेब में रख लिया. महात्‍मा गांधी कुछ बोलते इससे पहले डॉ. खरे वहां से चले गए. डॉ. खरे महात्‍मा गांधी द्वारा लिखा अपना इस्‍तीफा लेकर नागपुर पहुंचे और उसे सभी अखबारों में प्रकाशित करवा दिया. साथ ही, जनता को यह संदेश दिया कि किस तरह स्‍वयं महात्‍मा गांधी एक मुख्‍यमंत्री पर इस्‍तीफा देने का दबाव बना रहे हैं.

सईद की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर में फैले दंगे
9 अगस्‍त की सुबह के करीब 11.30 बजे होंगे. सादे कपड़ों में आए कई दर्जन पुलिस वालों ने अमृतसर रेलवे स्‍टेशन की चारों तरफ अपना डेरा डाल दिया था. इसी बीच, तभी रेलवे स्‍टेशन से एक हट्टा कट्टा पठान बाहर निकला, जिसे देखते ही पुलिसवालों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. बाद में, पता चला कि अमृतसर रेलवे स्‍टेशन से गिरफ्तार होने वाला शख्‍स मुस्लिम लीग का कट्टर पठान कार्यकर्ता मोहम्मद सईद है. कई बड़े हत्याकांड रचने वाले सईद का नाम सूबे में कुख्‍यात हो चुका था.

वहीं, सईद की गिरफ्तारी की बात जब मुस्लिम दंगाइयों को पता चली तो वह भड़क गए. उन्‍होंने दोपहर से ही सिखों और हिंदुओं के मकानों-दुकानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. शाम होते होते दंगा पूरे जिले में फैल चुका था. अमृतसर के करीब स्थित जबलफाद गांव में करीब 100 से अधिक हिंदुओं और सिखों का नरसंहार कर दिया गया. इसके बाद, करीब एक हजार मुस्लिम दंगाइयों ने धापाई गांव पर हमला कर दिया. यहां पर सिखों की तरफ से प्रतिकार हुआ और कई मुस्लिम दंगाई मारे गए.

एक ऐसा ही प्रतिकार गाजीपुर गांव में हुआ, जहां 14 मुस्लिम दंगाई मारे गए. वहीं दंगों में बढ़ती क्रूरता को देखते हुए मेजर जनरल टी डब्ल्यू, रीस ने कार्रवाई की तो मुस्लिम नेशनल गार्ड के दंगाई उनसे भी भिड़ गए. शाम होते होते मुस्लिम लीग के नेशनल गार्ड और सेना के बीच युद्ध जैसे हालात हो गए थे. वहीं, इन दंगों की खबर जैसे ही लाहौर में बैठे पंजाब के गवर्नर ईवॉन मेरेडिथ जेनर्किस को लगी तो उन्‍होंने संपूर्ण पंजाब प्रांत में प्रेस सेंसरशिप का आदेश जारी कर दिया. जिसका मतलब यह था कि 9 अगस्त को अमृतसर और समीपवर्ती इलाकों में हुए भीषण रक्तपात की खबरें अगले दिन पंजाब के किसी भी समाचार-पत्र में नहीं छपने वाली थीं.

Tags: 15 August, Independence day



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