बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अभी भारत में ही रहेंगीलेकिन शेख हसीना शरणार्थी स्टेटस के तहत भारत में नहीं रहेंगीभारत में शरण लेने को लेकर कोई शरणार्थी कानून नहीं
India’s Policy on Refugees: अवामी लीग सरकार के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था. शेख हसीना सोमवार (5 अगस्त) को भारत आ गई थीं. कथित तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी बहन के साथ ब्रिटेन में शरण लेने की योजना बनाई थी, जहां उनके परिवार के सदस्य रहते हैं. न्यूज18 को सूत्रों से मिली खबर के अनुसार शेख हसीना लंबे वक्त तक भारत में रह सकती हैं. क्योंकि ब्रिटेन जाने की उनकी योजना अभी सिरे नहीं चढ़ पा रही है. लेकिन वो शरणार्थी स्टेटस के तहत भारत में नहीं रहेंगी. उन्हें भारत में रहने के लिए वीजा लेना होगा.
शेख हसीना अपने देश में जारी हिंसक प्रदर्शन के बीच जान बचाकर भारत आई थीं. उनको लेकर आया बांग्लादेशी सेना का विमान दिल्ली से सटे गाजियाबाद में स्थित भारतीय वायुसेना के हिंडन एयरबेस पर उतरा था. माना जा है कि छह दिन से पूर्व प्रधानमंत्री हिंडन में एक सुरक्षित घर में रह रही हैं. ऐसी खबरें थीं कि हसीना ब्रिटेन में शरण मांग रही हैं. जहां उनकी बहन शेख रेहाना की बेटी ट्यूलिप सिद्दीक रहती हैं. वो ब्रिटेन की लेबर पार्टी और ब्रिटिश संसद की सदस्य भी हैं. हालांकि इसे लेकर अब तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है. अमेरिका ने भी कथित तौर पर हसीना का वीजा रद्द कर दिया है. वह अब यूएई और यूरोपीय देशों में शरण के लिए अपने विकल्प तलाश रही हैं.
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भारत में शरणार्थी कानून नहीं
एक अधिकारिक सूत्र ने कहा, “भारत में शरण लेने को लेकर कोई शरणार्थी कानून नहीं है. भारत में जानबूझकर ऐसा कानून नहीं बनाया गया है. कानूनी स्थिति यह है कि हम किसी को भी शरणार्थी या शरण की स्थिति में नहीं रख सकते. तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को भारत सरकार ने एक विशेष नीति के तहत शरण दी हुई है. लेकिन हमारे पास इसे लेकर कानून नहीं है.”
कौन हैं शरणार्थी?
शरणार्थियों की स्थिति पर 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और उसके बाद 1967 के प्रोटोकॉल के तहत, शरणार्थी शब्द किसी भी ऐसे व्यक्ति से संबंधित है जो अपने मूल देश से बाहर है और जाति, धर्म के कारण उत्पीड़न के भय, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण वापस लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक है. राज्यविहीन व्यक्ति भी इस अर्थ में शरणार्थी हो सकते हैं.
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भारत और यूएन कंवेंशन
भारत ने अतीत में शरणार्थियों का स्वागत किया है. लगभग तीन लाख लोगों को शरणार्थी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसमें तिब्बती, बांग्लादेश के चकमा और अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि के शरणार्थी शामिल हैं. लेकिन भारत ने 1951 के यूएन कंवेंशन या 1967 के प्रोटोकॉल पर दस्तखत नहीं किए थे. न ही भारत के पास कोई शरणार्थी नीति या शरणार्थी कानून है. इससे भारत को शरणार्थियों के सवाल पर अपने विकल्प खुले रखने की इजाजत मिली हुई है.
क्या कर सकती है सरकार
सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध अप्रवासी घोषित कर सकती है – जैसा कि यूएनएचसीआर सत्यापन के बावजूद रोहिंग्या के साथ हुआ है. उनके साथ विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के तहत घुसपैठियों के रूप में निपटने का निर्णय ले सकती है. हाल के वर्षों में भारत शरणार्थी नीति के सबसे करीब नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 आया है. जो शरणार्थियों को धर्म के आधार पर भेदभाव के कारण भारतीय नागरिकता प्रदान करता है.
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दुनिया भर में समस्या बने शरणार्थी
शरणार्थी दुनिया भर में समस्याएं पैदा कर रहे हैं. एक बार जब आप किसी को शरणार्थी का दर्जा दे देते हैं, तो वो अपने अधिकारों की मांग करता है और अदालत चला जाता है. इससे और अधिक समस्याएं पैदा होती हैं. इसीलिए भारत मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए देश में रहने की अनुमति देता है. शरणार्थियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए यह सवाल पहले भी उठ चुके हैं. खास तौर से म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत आने ते बाद यह मुद्दा उठा था.
वापस भेजना एक जटिल प्रक्रिया
किसी भी अप्रवासी को उसके देश में वापस भेजना एक जटिल प्रक्रिया है. यह साल 2021 में बांग्लादेश शरणार्थी शिविर में अपने माता-पिता से अलग हुई 14 वर्षीय रोहिंग्या लड़की को वापस भेजने के असम सरकार के असफल प्रयास से स्पष्ट है. लड़की को साल 2019 में असम में प्रवेश करते समय सिलचर में हिरासत में लिया गया था. म्यांमार में उसका कोई परिवार नहीं बचा था, लेकिन असम के अधिकारी उसे निर्वासित करने के लिए मणिपुर में मोरेह सीमा पर ले गए. म्यांमार ने उसे स्वीकार नहीं किया.
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FIRST PUBLISHED : August 10, 2024, 12:39 IST