हरिशंकर तिवारी के बहाने क्या ब्राह्मणों को साध पाएंगे अखिलेश, क्या है इतिहास


समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं को जोड़ने की हर तरह से कोशिश में लगी हुई है. पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय को गोरखपुर भेजा, जहां पूर्व विधायक हरिशंकर तिवारी की मूर्ति का चबूतरा गिराने को लेकर गांव के लोगों में नाराजगी थी. पार्टी इस मुद्दे को बहुत प्रचारित करने की कोशिश भी कर रही है. माना जा रहा है कि राज्य की दस विधान सभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव इसकी असली वजह है. पार्टी अपने पिछड़े और अल्पसंख्यक वोट बैंक के साथ ब्राह्मण मतदाताओं का समर्थन साहानुभूति जुटाना चाहती है. लेकिन यहां अहम सवाल ये है कि हरिशंकर तिवारी क्या वास्तव में ब्राह्मण के नेता थे.

हरिशंकर तिवारी का का मसला
छात्र राजनीति से करियर शुरु करने वाले हरिशंकर तिवारी उस दौर में ठेकेदारी की ओर मुड़ गए. ठेकेदारी और सरकारी टेंडर लेने में पूर्वांचल में संघर्ष शुरु हुए. ठेकेदारी और टेंडर हासिल करने की लड़ाई में कई लोगों की जान भी गईं. हरिशंकर तिवारी की हैसियत बढ़ती गई और वे पूर्वांचल के एक कद्दावर सरगना के तौर पर स्थापित हो गए. ठेकेदारी करने वाले अपने तौर पर लड़ते रहे और तिवारी का एक विरोधी गुट भी खड़ा हो गया. उस दौर में विश्वनाथ प्रताप सिंह और नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश में शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता थे. हरिशंकर तिवारी खुद को कांग्रेस पार्टी का नेता बताते रहे.

हालांकि ये भी सच्चाई है कि कांग्रेस पार्टी ने हरिशंकर तिवारी को टिकट नहीं दिया और 1985 में वे पहली बार चिल्लूपार से निर्दल विधायक बने. ये चुनाव उन्होंने जेल में रहते हुए जीता था. ये भी कहा जाता है कि ये पहला मौका था जब ठेकेदारी करने वाले और आपराधिक मामलों में आरोपी कोई बाहुबली विधायक बना था. इससे पहले नेता अपने इलाकों में रसूख रखने वालों से समर्थन तो लेती थी लेकिन उन्हें सीधे राजनीति में नहीं घुसने देती थी. सातवे दशक में माफिया के तौर पर पहचाने जाने वाले हरिशंकर तिवारी लगातार छह बार अपनी सीट से चुनाव जीते. उनकी सीट को उनके नाम से ही जाना जाने लगा था.
1996 में कल्याण सिंह की सरकार में हरिशंकर तिवारी को मंत्री बना दिया गया. इसके बाद जो भी सरकार बनी उसमें वे मंत्री होते ही थे.

हरिशंकर तिवारी- बाहुबली से राजनीति में आए, प्रदेश में मंत्री भी रहे.

ब्राह्मण नेता बनाने की कोशिश
समय के बदलाव के साथ उन्हें ब्राह्मण नेता के तौर स्थापित करने की कोशिशें होने लगीं. लेकिन राजनीति ने जैसी स्थिति बनाई थी उसमें ब्राह्मण राजनीति का बहुत मायने नहीं रह गया था. न ही कोई ऐसा ब्राह्मण नेता स्थापित था जिसका असर राज्य भर के दो-चार जिलों में एक साथ हो. हां, ये जरूर देखा गया था कि मंदिर आंदोलन के बाद ब्राह्मण समुदाय बीजेपी के साथ जुड़ गया था. वैसे भी आजादी के बाद से ही सत्ताधारी दल के साथ रहने वाले ब्राह्मणों को बीजेपी की राजनीति अनुकूल लग रही थी. बाकी पिछड़े और दलित समुदायों के लोगों ने भी बीएसपी और एसपी का दामन पकड़ लिया था.
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से प्रदर्शन किया उससे समाजवादी पार्टी नेताओं को लगने लगा है कि अगर ब्राह्मणों को नए समीकरण दिखा कर जोड़ लिया जाय तो पार्टी का आधार बढ़ाया जा सकता है. 16 मई 23 को हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद उनके गांव में मूर्ति लगाने के लिए चबूतरा बनाया गया था. इसे तोड़ने को लेकर गांव में गुस्सा बताया जा रहा था. इस स्थिति में सहानुभूति प्रकट करने के लिए समाजवादी पार्टी ने विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय को उनके गांव भेजा था. पूर्व विधान सभा अध्यक्ष ने जाकर वहां हरिशंकर तिवारी के बेटों से भेट की.

हरिशंकर तिवारी के संघर्ष में एक कोना गोरखनाथ पीठ को भी बताया जाता रहा है. इसी पीठ के महंथ योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं. गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी के घर को हाता के नाम से जाना जाता है. पहले बहुत सारे मसलों पर तिवारी और पीठ के बीच तनातनी हुआ करती थी. इस बार भी चबूतरा तोड़े जाने की घटना को उसी से जोड़ते हुए मुख्यमंत्री के ब्राह्मण विरोधी होने का एक नया मसला खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन समाजवादी पार्टी की ये कोशिश कितनी सफल हो सकेगी, इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. इसकी दो साफ वजहें दिख रही है. तिवारी अब इस दुनिया में नहीं हैं. दूसरा लोकसभा और विधान सभा चुनावों में खुद हार चुके उनके बेटों लोगों पर उस तरह का असर रखते हों, इसका कोई सुबूत नहीं दिखता.

Tags: Akhilesh yadav, Samajwadi party



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