सेकेंड वर्ल्ड वॉर में मुसीबत में था पोलैंड, तब कोल्हापुर के राजा बने थे मसीहा


Kolhapur Memorial in Warsaw: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को अपनी दो दिवसीय यात्रा पर  पोलैंड पहुंचे. यह 45 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा है. वारसॉ पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने तीन स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित की. सबसे पहले वे नवानगर के जाम साहब के स्मारक गुड महाराजा स्क्वायर पहुंचे. उसके बाद उन्होंने मोंटे कैसिनो मेमोरियल और कोल्हापुर मेमोरियल का दौरा किया. 

गुड महाराजा स्क्वायर वो जगह है, जिसका गुजरात से खास कनेक्‍शन है. वारसॉ में बना यह स्मारक गुजरात के नवानगर (अब जामनगर) के पूर्व महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जाडेजा को समर्पित है. वारसॉ के लोग उन्‍हें बेहद सम्‍मान की नजर से देखते हैं. यहां उन्‍हें ‘सबसे अच्‍छे महाराजा’ के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे एक प्रेरक कहानी है, जो बताती है क‍ि भारतीय कहीं भी रहें, अपने मानवीय मूल्‍य और छाप छोड़कर ही आते हैं. भारतीय महाराजा ने पोलैंड के 1000 अनाथ बच्‍चों को पिता की तरह पाला था. तब उन्‍होंने बच्‍चों से कहा था, ‘खुद को अनाथ मत समझो, मैं तुम्‍हारा पिता हूं.’ पीएम मोदी ने उस जगह जाकर 80 साल पुरानी घटना याद दिला दी. 

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कोल्हापुर स्मारक का इतिहास
भारतीय प्रधानमंत्री ने फिर कोल्हापुर मेमोरियल का दौरा किया. कोल्हापुर मेमोरियल मोंटे कैसिनो मेमोरियल के बगल में स्थित है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, महाराष्ट्र के कोल्हापुर का एक छोटा सा गांव, जिसका नाम वलीवडे है, पोलिश शरणार्थियों के लिए आशा की किरण बन गया. ऐसे समय में जब हजारों पोलिश बच्चे और शरणार्थी अपने अब तक के सबसे बड़े संकट फंस गए थे. तब भारत ने 1942 और 1948 के बीच सोवियत दमन से भागकर आए लगभग 6,000 पोलिश नागरिकों का स्वागत किया. इनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी लोग शामिल थे. जिन्हें युद्ध के कारण भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा. उस समय, कोल्हापुर के राजा, भारत सरकार के साथ-साथ स्थानीय अधिकारियों ने मानवीय सहायता के प्रति असाधारण प्रतिबद्धता को उजागर करते हुए शरण की पेशकश की. वलीवडे में पोलिश शरणार्थी बस्ती विकसित करने का निर्णय मुख्य रूप से ब्रिटिश अधिकारियों के साथ भारत सरकार के सहयोग से प्रेरित था.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में पोलिश शरणार्थियों की याद में एक स्मारक का अनावरण. फोटो: एक्स

आखिर क्यों चुना वलीवडे गांव
मुंबई से लगभग 500 किमी दक्षिण में स्थित, वलीवडे को इसकी अनुकूल जलवायु के कारण चुना गया था. यह उम्मीद की गई थी कि यह अन्य क्षेत्रों की कठोर परिस्थितियों की तुलना में रहने का वातावरण बेहतर प्रदान करेगा. गांव को विभिन्न सुविधाओं के साथ पूरी तरह एक पोलिश बस्ती के रूप में विकसित किया गया था. इनमें एक चर्च, एक सामुदायिक केंद्र, कई स्कूल, एक कॉलेज, एक डाकघर, एक थिएटर और यहां तक की सिनेमाघर भी शामिल था. पोलिश शरणार्थियों के इस स्थान से चले जाने के बाद, इसको विभिन्न स्मारकों के माध्यम से संरक्षित किया गया. कोल्हापुर में एक कब्रिस्तान है, जिसे 2014 में फिर से खोला गया. यह उन पोलिश व्यक्तियों का सम्मान करने के लिए किया गया, जिनकी भारत में मृत्यु हो गई थी और उन्हें यहां दफनाया गया था. 

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कोल्हापुर परिवार स्मारक
इसके अलावा, महावीर गार्डन पार्क में एक ओबिलिस्क (एक लंबा पतला मिनारनुमा स्मारक) पोलिश जनता और भारतीयों के बीच लंबे समय से चली आ रही दोस्ती के प्रमाण के रूप में खड़ा है. इसे एसोसिएशन ऑफ पोल्स इन इंडिया द्वारा समर्पित किया गया था. इसी तरह, वारसॉ में, कोल्हापुर परिवार का एक स्मारक उन लोगों द्वारा बनाया गया था जिन्होंने अपना बचपन वहां बिताया था. 1943-1948 में, 5,000 पोलिश शरणार्थियों को भारत के वलीवडे शिविर में आश्रय मिला. यहां पर लिखा हुआ है, “कोल्हापुर रियासत के आतिथ्य के लिए धन्यवाद. दुनिया भर में फैले हुए, हम लोग भारत को हार्दिक कृतज्ञता के साथ याद करते हैं.” 

1954 में शुरू हुआ रियूनियन
पोलिश शरणार्थी जो कभी वलीवडे में रहते थे, उन्होंने भारत के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे हैं. रियूनियन1954 में शुरू हुआ और लगातार यात्राओं और सम्मेलन से विकसित हुआ. 1990 में स्थापित एसोसिएशन ऑफ पोल्स इन इंडिया 1942-1948, इतिहास को संरक्षित करने और पूर्व शरणार्थियों और उनके भारतीय मेजबानों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने में सहायक रहा है. वलीवडे के पूर्व पोलिश निवासियों ने भारत की कई बार यात्राए की हैं. ये यात्राएं और  मुलाकातें उनके अतीत की मार्मिक याद दिलाने और कृतज्ञता व्यक्त करने के तरीके के रूप में काम करती हैं. 

Tags: MP Narendra Modi, PM Modi



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