संविधान या सियासी मजबूरी.. SC/ST कोटे में क्रीमी लेयर के विरोध में क्यों सरकार


नई दिल्ली. देश में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को मिलने वाले आरक्षण के अंदर सब कोटा बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केंद्र सरकार ने विरोध किया है. दरअसल इस मामले पर शुक्रवार शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक हुई. कैबिनेट मीटिंग खत्म होने के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का विरोध किया. उन्होंने भीम राव आंबेडकर के दिए संविधान का हवाला देते हुए कहा कि वहां एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. यहां क्रीमी लेयर का मतलब उन लोगों और परिवारों से है जो उच्च आय वर्ग में आते हैं.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने एक अगस्त को एससी/एसटी आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्यों के पास एससी/एसटी कोटे के अंदर कोटा बनाने का अधिकार है, ताकि इस आरक्षण से वंचित तबके को भी इसका लाभ मिल सके. वहीं 7 जजों की संवैधानिक बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने अपने आदेश में कहा था कि राज्यों को एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए और उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.

आंबेडकर के संविधान का दिया हवाला
अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसलों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर विस्तार से चर्चा हुई, जिसमें एससी और एसटी के लिए आरक्षण को लेकर कुछ सुझाव दिए गए थे. उन्होंने कहा कि कैबिनेट का यह मानना है कि एनडीए सरकार डॉ. आंबेडकर के दिए संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है.

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वैष्णव ने कहा, ‘बीआर आंबेडकर के दिए संविधान के अनुसार, एससी-एसटी आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ के लिए कोई प्रावधान नहीं है.’ उन्होंने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुरूप होना चाहिए. वहीं जब उनसे पूछा गया कि क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार इस संबंध कोई कदम उठाने जा रही है तो उन्होंने कहा, ‘मैंने आपको कैबिनेट बैठक में हुई चर्चा के बारे में बता दिया है.’

मोदी सरकार के पीछे कोई राजनीतिक मजबूरी?
अश्विनी वैष्णव भले ही एससी/एसटी आरक्षण पर आंबेडकर के संविधान का हवाला दे रहे हैं, लेकिन सियासी जानकार इस विरोध के पीछे राजनीतिक मजबूरी को भी एक बड़ी वजह मान रहे हैं. एनडीए की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने साफ कहा कि आरक्षण के मूलभूत प्रावधानों में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए ऐलान किया कि उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इसके खिलाफ अपील करेगी.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बड़ी चिंता यही जताई जा रही है कि कोटे के अंदर कोटा देने से दलित और आदिवासियों की उपजातियों के बीच तनाव पैदा हो सकता है. यही वजह रही कि एससी/एसटी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इससे पहले, शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी चिंता जताई थी.

पीएम मोदी से मिलने वाले सांसदों में बीजेपी के राज्यसभा सदस्य सिकंदर कुमार ने कहा, ‘हम सभी सुप्रीम कोर्ट की बातों से चिंतित थे. हमें इस मामले पर चिंतित लोगों के फोन आ रहे थे.’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने सांसदों के साथ गंभीर चर्चा की और आश्वासन दिया कि सरकार शीर्ष अदालत की व्यवस्था को लागू नहीं होने देगी.

वहीं बीजेपी सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को सौंपे ज्ञापन में आग्रह किया कि क्रीमी लेयर के मुद्दे पर शीर्ष अदालत की व्यवस्था को लागू नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री की भी ऐसी ही राय थी. उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वह मामले को देखेंगे. उन्होंने हमें चिंता न करने को भी कहा.’

वहीं इस बैठक के बाद पीएम मोदी ने भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘आज एससी/एसटी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. एससी/एसटी समुदायों के कल्याण और सशक्तीकरण के लिए हमारी प्रतिबद्धता और संकल्प को दोहराया.’ (भाषा इनपुट के साथ)

Tags: Caste Reservation, SC Reservation, Supreme Court



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