श्याम रजक हवा का रुख खूब पहचानते हैं, क्‍या पुराना इतिहास दोहराने वाले हैं


श्याम रजक ने इस दफा शायराना अंदाज में इस्तीफा लिख कर आरजेडी छोड़ी है. हालांकि ये पहला मौका नहीं है कि उन्होंने पार्टी बदली. इससे पहले भी वे आरजेडी छोड़ कर जेडीयू में जा चुके हैं. जेपी आंदोलन से राजनीति की शुरुआत करने वाले श्याम रजक लालू प्रसाद यादव के समर्थक और सहयोगी के तौर पर जनता दल से जुड़े थे. जेपी आंदोलन के बहुत सारे नेता जनता पार्टी के रास्ते जनता दल से ही जुड़े थे. 1995 में पहली बार श्याम रजक जनता दल के टिकट पर ही फुलवारी शरीफ से विधायक चुने गए.

लालू के खासमखास
एक बार विधायक चुन लिए जाने के बाद श्याम रजक ने अपने क्षेत्र में ऐसी पकड़ बनाई कि वे आरजेडी छोड़ने के बाद भी वहां से चुनाव जीतते रहे. लालू और राबड़ी की सरकार में मंत्री भी रहे. लालू के इस कदर नजदीकी रहे कि उन्हें किचेन कैबिनेट का हिस्सा माना जाता था. उन्होंने लालू प्रसाद यादव के प्रति खूब वफादारी भी निभाई. यहां तक कि बिहार की राजनीति में राम-श्याम का जुमला चलने लगा. इसमें राम, रामकृपाल यादव को कहा जाता था तो श्याम यही श्याम रजक थे.

हालात बदले और 2009 में लालू का साथ छोड़ श्याम रजक नीतीश कुमार के साथ उनकी पार्टी में आ गए. 2010 में वे चुनाव भी जीते लेकिन मंत्री भी बने. इसके बाद अगले चुनाव में फिर वे जीते. लेकिन इस बार महागठबंधन की सरकार में उन्हें मंत्री पद नहीं मिल सका. फिर जब नीतीश कुमार पैतरा बदल कर बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाई तो उन्हें मंत्री पद दिया.

जेडीयू से निकाले गए
साल 2020 में नीतीश कुमार से इनके संबंधों में गंभीर दरार आ गई. उस समय कयास लगाए जा रहे थे कि श्याम रजक इस्तीफा दे देंगे. लेकिन उनके इस्तीफे से पहले ही मुख्यमंत्री ने इन्हें मंत्री पद से हटा दिया. साथ ही पार्टी अध्यक्ष ने श्याम रजक को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी निकाल दिया. अगले ही दिन श्याम रजक वापस आरजेडी में लौट आए. उस समय उन्होंने कहा था कि ये उनका पुराना घर है. अखिल भारतीय धोबी महासंघ के नेता के तौर पर भी उनकी एक अलग पहचान रही है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ पद यात्राएं भी की है. राजनीतिक रूप से काफी पगे हुए रजक के अगले कदम को लेकर बिहार की राजनीति में कयासों का दौर जारी है लेकिन अभी तक उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

FIRST PUBLISHED : August 22, 2024, 17:12 IST



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