चिराग पासवान ने मंत्री पद की शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री के लिए बहुत ही आदर वाले भाव दिखाए थे. पहले भी खुद ही कह चुके हैं कि वे मोदी के हनुमान हैं. हालांकि किताबों और दिमागों में ये है कि हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम के किसी भी फैसले पर कभी सवाल नहीं उठाए. जबकि हाल में चिराग पासवान ने जो तेवर दिखाए उसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गईं थी. बड़ी सरकारी नौकरियों में लेटरल एंट्री को भी वे अपने तेवर दिखा चुके हैं. ये दिगर बात है कि अब ये मुद्दा ही नहीं रह गया है. सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया पर ही रोक लगा दी है. इसके बाद भी उन्होंने बुधवार को आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी दलों के भारत बंद का समर्थन किया. जबकिएनडीए में शामिल कोई दूसरा दल बंद के समर्थन में नहीं है.
बदले बदले से हैं तेवर
इससे पहले चिराग पासवान ने वफ्फ बोर्ड मसले पर भी एनडीए से अलग राय जताई थी. उन्होंने कहा था कि इस बिल को पहले ज्वाइंट पॉर्लियामेंट्री कमेटी को भेजा जाना चाहिए था. बिल जेपीसी को चला गया. फिर भी आरक्षण वाले मसले पर चिराग ने भारत बंद का समर्थन क्यों किया ये सवाल अहम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिराग को वही खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय सौंपा जो उनके पिता के पास था. फिर भी पिता की राह से अलग हो कर चिराग ने कम से कम एक मुद्दे पर विपक्षी दलों का साथ दिया.
‘हनुमान भाव’ मे चिराग पासवान. (फाइल फोटो)
विपक्ष के सुर से मिल जा रहे हैं सुर
देखा जाय तो इस समय कांग्रेस पार्टी दलित और पिछड़ों की बाते ज्यादा कर रही है. उत्तर प्रदेश में मायावती ने भी आरक्षण के भीतर भी कोटा का विरोध करते हुए अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ही लेटरल एंट्री में आरक्षण की अनदेखी किए जाने का सवाल सबसे पहले उठाया. या कहा जाय राहुल कांग्रेस को दलितों- पिछड़ों से जोड़ने की कोशिश लंबे वक्त से कर रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने जातीय जनगणना के बाद लेटरल एंट्री में आरक्षण का मसला उठाया. इस तरह से दोनो मुद्दे उठा कर चिराग मंत्री रहते हुए खुद ब खुद विपक्षी नेताओं के साथ खड़े दिखने लगते हैं.
इन तीनों मसलों पर चिराग ने जिस तरह से स्टैंड लिया उससे वे हनुमान की भूमिका में तो नहीं दिखते. राजनीति में कुछ भी मुमकिन है. लिहाजा ये कयास भी लगाया जा रहा था कि बीजेपी बिहार में किसी अन्य दलित नेता की तलाश कर रही है जो उसकी राह आसान बना सके. बीजेपी वैसे भी बिहार में लगातार दूसरे दलों के भरोसे नहीं रहना चाहती. चिराग अपने मतदाताओं को संतुष्ट करने के लिए भी ये कर रहे हों तो बहुत गले से उतरने वाली बात नहीं है. क्योंकि सरकार भी दलितों का मसला पर विपक्ष को लीड नहीं लेने देना चाहती है. इसके लिए मोदी सरकार के मंत्रियों की ओर से साफ संकेत भी आ गए हैं. वफ्फ बिल जेपीसी को सौंप दिया गया. लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी गई और ये भी हल्के तरीके से ही सही, लेकिन साफ कर दिया गया है कि केंद्र कोटा विदइन कोटा के हक में नहीं है.
Tags: Bharat Bandh, Chirag Paswan
FIRST PUBLISHED : August 21, 2024, 17:59 IST