42 शहरों में 5.08 लाख इकाइयों का निर्माण अटका है. डेवलपर्स की गलती से 2 हजार प्रोजेक्ट ठप पड़े हुए हैं. डेवलपर्स लोगों का पैसा गलत जगह इस्तेमाल कर रहे हैं.
नई दिल्ली. भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है और हालिया रिपोर्ट से इसकी हकीकत से पर्दा भी उठ गया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के 42 शहरों में 5.08 लाख इकाइयों के साथ लगभग 2,000 आवासीय परियोजनाएं अटकी हुई हैं. इसका मतलब है कि इन प्रोजेक्ट में पैसे लगाने वालों को अपने घर का सपना पूरा होने का लंबे समय तक इंतजार करना पड़ सकता है. आखिर इसका जिम्मेदार कौन है और खरीदारों के साथ कैसे न्याय हो सकेगा.
डेटा एनालिटिक्स कंपनी प्रोपइक्विटी के अनुसार, इसका मुख्य कारण डेवलपर्स द्वारा वित्तीय कुप्रबंधन और क्रियान्वयन क्षमताओं की कमी है. इन प्रोजेक्ट के डेवलपर्स ने लोगों के पैसों का सही इस्तेमाल नहीं किया और आधा-अधूरा निर्माण कर छोड़ दिया. प्रोपइक्विटी के अनुसार, देश में 1981 आवासीय परियोजनाएं रुकी हुई हैं. इन प्रोजेक्ट में फंसे घरों की कुल संख्या 5.08 लाख है. इन रुकी हुई परियोजनाओं में से 1,636 परियोजनाएं 14 पहली श्रेणी के शहरों में हैं, जिनमें 4,31,946 इकाइयां रुकी हैं. वहीं, 345 परियोजनाएं 28 दूसरी श्रेणी वाले शहरों में हैं, जिनमें 76,256 इकाईयों का निर्माण ठप है.
बढ़ती जा रही फंसे प्रोजेक्ट की संख्या
रिपोर्ट में कहा गया है कि रुकी हुई इकाइयों की संख्या बढ़कर 5,08,202 हो गई है, जो 2018 में 4,65,555 इकाई थी. इसका मतलब है कि डेवलपर्स की ओर से गलत फैसलों की वजह से प्रोजेक्ट अटकने के मामले और बढ़ते जा रहे हैं. इसका सीधा असर मकान खरीदारों पर पड़ रहा है और दिल्ली-एनसीआर सहित तमाम शहरों में मकान खरीदारों के सपने अधूरे पड़े हैं.
गलत जगह लग रहा लोगों का पैसा
प्रॉपइक्विटी के संस्थापक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) समीर जसूजा ने कहा, ‘रुकी हुई परियोजनाओं की समस्या और उसके बाद उनमें वृद्धि, डेवलपर्स की निष्पादन क्षमताओं की कमी, नकदी प्रवाह के कुप्रबंधन और नए भूखंड खरीदने या अन्य कर्ज चुकाने के लिए धन के उपयोग के कारण है.’ इसका मतलब है कि डेवलपर्स लोगों से पैसे लेकर उसे जमीन खरीदने में लगा देते हैं या फिर अपना कर्ज चुकाने में इस्तेमाल कर रहे. इससे निर्माण पूरा नहीं होता और लोगों के पैसे फंस जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 15, 2024, 15:31 IST