10 Days before Independence Day: लाहौर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने के बाद महात्मा गांधी पटना के लिए रवाना हो गए. 8 अगस्त 1947 की सुबह उनकी ट्रेन पटना के बेहद करीब थी. वहीं ट्रेन में बैठे महात्मा गांधी के जहन में अभी भी वाद और लाहौर में हिंदू-सिख परिवारों के साथ हुई हिंसा के दृश्य चल रहे थे. इसी बीच, उनको ख्याल आया कि आज 8 अगस्त है. इस तारीख के जहन में आते ही उन्हें याद आया कि आज से ठीक पांच साल पहले यानी 8 अगस्त 1942 को मुंबई (तब का बंबई) में आयोजित भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में उन्होंने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का आह्वान किया था.
इस बैठक के ठीक बाद महात्मा गांधी को अंग्रेज हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था. तभी उनके जहन में आया कि 5 वर्ष पहले का वह दिन और आज का दिन. उस दिन स्वतंत्रता किसी को दूर दूर तक नजर नहीं आ रही थी, लेकिन सभी के मन में उत्साह बना हुआ था. लेकिन अब जब महज एक हफ्ते बाद देश आजाद होने जा रहा है, लेकिन मन में न ही कोई उत्साह है और न ही कोई उमंग. दरअसल, बीते दो-तीन दिनों में उन्होंने वाह के शरणार्थी शिविर और लाहौर में हिंदू-सिख परिवारों की जो दुर्दशा देखी थी, उसके चलते उनका मन खिन्न था. इसी के साथ उन्होंने अपना बचा हुआ जीवन पाकिस्तान में बिताने का भी ऐलान कर दिया.
जोधपुर रियासत पर कब्जे के लिए बिछाई बिसात
भारत पाकिस्तान के बंटवारे के ऐलान के साथ मोहम्मद अली जिन्ना ने जोधपुर, कच्छ, उदयपुर और बड़ौदा रियासतों को पाकिस्तान में मिलाने के लिए बिसात बिछाना शुरू कर दी थी. जिन्ना के इस बिसात को अपने नाम करने के लिए भोपाल के नवाब को अपना मोहरा बनाया था. वह भोपाल के नवाब के जरिए जोधपुर रियासत के महाराजा को भी राजी करने की कोशिश में लगा हुआ था. जिन्ना ने जोधपुर रियासत के महाराजा के सामने प्रस्ताव रखा था कि यदि वह 15 अगस्त से पहले अपनी रियासत को स्वतंत्र घोषित कर दे तो पाकिस्तान उनके कदमों पर कीमती सियासी तोहफों की लाइन लाइन लगा देगा.
इन कीमत सियासी तोहफों में हथियारों की आपूर्ति, अकाल की स्थिति में अन्न की आपूर्ति, जोधपुर-हैदराबाद रेल मार्ग और कराची बंदरगाह पर जोधपुर रियासत का अधिकार शामिल था. जिन्ना द्वारा बिछाई इस सियासी बिसात में जोधपुर के महाराजा फंसते, इससे पहले कदंबी शेषाचारी वेंकटाचारी बीच में आ खड़े हुए. इंडियन सिविल सर्वेंट परीक्षा पास करने वाले वेंकटाचारी उन दिनों जोधपुर सियासत के दीवान थे. उन दिनों जोधपुर रियासत का कोई भी फैसला वेंकटाचारी की सलाह के बिना नहीं होता था. और, वेंकटाचारी जिन्ना के खोखले तोहफों और झूठे वादों के बारे में बहुत अच्छी तरह से समझ चुके थे.
वेंकटाचारी ने फेरा जिन्ना के अरमानों पर पानी…
उन दिनों, वायसरॉय लार्ड माउंटबेटन भी यह नहीं चाहते थे कि जोधपुर रियासत पाकिस्तान के साथ जाए. वायसरॉय लार्ड माउंटबेटन जानते थे कि उनकी यह ख्वाहिश पूरी करने की कूबत सिर्फ वेंकटाचारी में ही है. इस बाबत बात करने के लिए वायसरॉय लार्ड माउंटबेटन ने वेंकटाचारी को दोपहर के भोजन में वायसरॉय हाउस बुलवाया. 8 अगस्त 1947 की दोपहर करीब 12 बजे जोधपुर रियासत की आलीशान कार से वेंकटाचारी वायसरॉय हाउस पहुंचे. चूंकि जोधपुर रियासत हमेशा से अंग्रेजों की हमदर्द रही है, लिहाजा वेंकटाचारी को वायसरॉय हाउस में बिल्कुल राजशादी सम्मान मिल रहा था.
भोजन के दौरान, वायसरॉय ने वेंकटाचारी से दिल की बात कह दी कि जल्द-से-जल्द जोधपुर रियासत को भारत में विलय का ऐलान कर देना चाहिए. वहीं, इसी बातचीत के साथ वेंकटाचारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि जोधपुर रियासत भारत में विलीनीकरण के लिए तैयार है. वेंकटाचारी के यह कहते ही वायसरॉय लार्ड माउंटबेटन ने राहत की सांस ली. यह भारत के लिए भी अच्छी खबर थी. वेंकटाचारी ने बड़ी ही सूझबूझ से पहले जोधपुर के महाराजा को जिन्ना की बात में फंसने से बचाया और फिर उन्हें भारत में विलय करने के लिए राजी भी कर लिया. वेंकटाचारी की इस सूझबूझ से जिन्ना के अरमानों पर पानी फिर चुका था.
और अब कोलकाता भी धधक उठा
दंगों की आग अब कोलकाता (तब का कलकत्ता) में धधकना शुरू हो चुकी थी. कोलकाता में एक-एक कर तमाम बस्तियां जलाई जा रहीं थीं. पूरे कोलकाता में नरसंहार चरम पर पहुंच चुका था. आलम यह था कि कुछ हिंदू परिवारों को बचाने की कोशिश कर रहे पुलिस अधिकारियों पर दंगाइयों ने देसी बम से हमला कर दिया था. इस हमले में डिप्टी पुलिस कमिश्नर एसएच घोष, एफएम जर्मन सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे. 8 अगस्त 1947 की शाम होते हुए अब कोलकाता से के साथ हैदराबाद, वारंगल और निजामशाही के गांवों में दंगों फैल चुके थे. दंगाई हिंदुओं के मकानों और दुकानों पर लगातार हमले किए जा रहे थे. इन दंगों की आग के साथ 8 अगस्त 1947 का सूरज अस्त हो गया.
Tags: 15 August, Independence day
FIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 07:40 IST