गर्लफ्रेंड से रेप से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के जज ने पीड़िता को ही नसीहत दे डाली. कह डाला कि लड़कियों को सेक्स की इच्छा पर नियंत्रण रखना चाहिए और 2 मिनट के आनंद पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी देखी तो हैरान रह गया. सर्वोच्च अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा, जज का काम मामले में फ़ैसला सुनाना है, प्रवचन देना नहीं. निचली अदालतों को फैसला कैसे लिखना चाहिए, इसे लेकर भी हम निर्देश जारी कर रहे हैं.
मामला पश्चिम बंगाल का है, जहां इन दिनों जूनियर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या को लेकर बवाल चल रहा है. एक लड़के पर अपनी नाबालिग गर्लफ्रेंड के साथ रेप का आरोप लगा. डिस्ट्रिक कोर्ट ने लड़के को दोषी ठहराते हुए 20 साल जेल की सजा सुनाई. लेकिन जैसे ही मामला कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंचा, केस ही बदल गया. कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस चितरंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की बेंच ने न सिर्फ लड़के को पॉक्सो एक्ट से बरी कर दिया, उलटे लड़की को ही नसीहत दे डाली. दोनों टीनएजर्स के बीच अफेयर था और उन्होंने सहमति से संबंध बनाए थे. लड़कियों पर सेक्स इच्छाओं पर काबू पाना चाहिए. कोर्ट ने लड़कों को भी नसीहत दी थी कि उन्हें भी लड़कियों की गरिमा का सम्मान करना चाहिए.
प्लीज अपनी राय न थोपें
अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, हाईकोर्ट का आदेश आपत्तिजनक है. निचली अदालतों को फैसला कैसे लिखना चाहिए, इसे लेकर भी हम निर्देश जारी कर रहे हैं. फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने कहा, अदालत के फैसलों में जज की व्यक्तिगत राय नहीं होनी चाहिए. वो केस से जुड़े लोगों या किसी भी शख्स को किसी तरह की राय नहीं दे सकते. जज का काम मामले में फैसला सुनाना है, प्रवचन देना नहीं. फैसले में गैर-जरूरी या बिना मतलब की बातें नहीं होनी चाहिए. फैसला सामान्य भाषा में होना चाहिए. हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि फैसला ना तो थीसिस है और ना ही लिट्रेचर. जबकि इस फैसले में युवाओं को जज की निजी सलाह शामिल थी.
फैसला पूरी तरह तथ्यों पर हो
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित होने चाहिए. इसमें बचाव और अभियोजन पक्ष के सबूतों को शामिल किया जाना चाहिए. वकीलों की जिरह को जगह मिलनी चाहिए. सबूतों का विश्लेषण होना चाहिए. आरोपी को बरी करने या दोषी करार देने के कारण शामिल किए जाने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि फैसला लिखने का अंतिम उद्देश्य होता है कि दोनों ही पक्षों को ये पता चले कि कोर्ट ने उसके पक्ष में या खिलाफ में क्यों फैसला दिया है. लिहाजा नतीजे तक पहुंचने में मदद करने वाले कारणों का जिक्र होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणियां बिल्कुल गैर जरूरी थी.
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FIRST PUBLISHED : August 20, 2024, 20:47 IST