क्‍यों एक-दूसरे की सौतन हैं महंगाई और कर्ज, 9 बार से बांध रखा है गवर्नर का हाथ


हाइलाइट्स

रेपो रेट अभी 6.5 फीसदी पर बरकरार है. महंंगाई दर का अनुमान 4.4 फीसदी हो गया. कर्ज सस्‍ता करने से महंगाई बढ़ जाती है.

नई दिल्‍ली. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) जब गुरुवार को एमपीसी बैठक के बाद अपने फैसले सुनाने मीडिया से रूबरू हुए तो आम आदमी की आशा भरी निगाहें उन पर टिकी हुई थीं. लेकिन, जैसा कि पिछली 8 बार की बैठक में हो रहा था कि रेपो रेट स्थिर रही, वही हालात इस बार रहे. गवर्नर ने एक बार फिर महंगाई की मजबूरी में ब्‍याज दर न घटा पाने का दुख जताया. ऐसे में आम आदमी के जेहन में सवाल उठता है कि आखिर महंगाई और ब्‍याज में ऐसा कौन सा सौतन वाला रिश्‍ता है, जो दोनों एक दूसरे को आगे नहीं बढ़ने देते.

दरअसल, गवर्नर ने खासा जोर देकर यह बात कही कि हम नीतिगत फैसले करते समय महंगाई दर को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. आरबीआई ने अपना लक्ष्‍य भी 4 फीसदी से नीचे का तय कर रखा है, लेकिन कोरोना महामारी के बाद से खुदरा महंगाई दर 4 फीसदी के ऊपर ही बनी हुई है. खासकर खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर का ज्‍यादा दबाव है. चालू वित्‍तवर्ष के लिए भी आरबीआई ने महंगाई दर का अनुमान 4.4 फीसदी रखा है. जाहिर है कि जब तक महंगाई आरबीआई के तय दायरे तक नहीं आएगी, रेपो रेट में कटौती होना मुश्किल दिख रहा है.

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क्‍या है दोनों में उल्‍टा रिश्‍ता
एमओएफएसएल के चीफ इकनॉमिस्‍ट निखिल गुप्‍ता का कहना है कि महंगाई और कर्ज की ब्‍याज दरों के बीच एक उल्‍टा संबंध बनता है. इसकी वजह सीधे खर्चे और डिमांड से जुड़ी हुई है. जाहिर है कि इन दोनों में कोई भी उछाल आने का सीधा असर महंगाई और फिर ब्‍याज पर दिखता है. इसे आप ऐसे समझें कि दोनों ही एक दूसरे के आमने सामने खड़े हैं. एक में कोई भी बदलाव आने पर दूसरे में भी बदलाव दिखेगा.

आसान भाषा में समझें असर
आपको सीधी और सरल भाषा में बताते हैं कि गवर्नर आखिर ब्‍याज दरें घटाने यानी कर्ज सस्‍ता करने से पीछे क्‍यों हट रहे और इसका ठीकरा महंगाई के सिर क्‍यों फोड़ा जा रहा. मान लेते हैं कि गवर्नर अगली बैठक में ब्‍याज दर घटा देते हैं. इससे लोगों को सस्‍ती दरों पर लोन मिलेगा और लोग ज्‍यादा लोन लेने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे. ज्‍यादा लोन का मतलब है कि उनके पास अधिक पैसा आएगा. अब आपकी जेब में पैसा आ गया तो जाहिर है कि आप इसे बाजार में खर्च करेंगे. भले ही इन पैसों से आप कुछ भी खरीदें, लेकिन खर्चा बढ़ने पर बाजार में डिमांड बढ़ेगी.

फिर शुरू होता है डिमांड-सप्‍लाई का खेल
अब यह तो आपको पता ही है कि डिमांड और सप्‍लाई का अपना खेल होता है. बाजार में डिमांड बढ़ गई और प्रोडक्‍शन में उछाल नहीं आया तो सप्‍लाई पर असर पड़ेगा. मांग के अनुसार सप्‍लाई नहीं होने से कीमतों में भी उछाल आना तय है. यानी ब्‍याज दर तो घटाई थी लोगों को सस्‍ता लोन देने के लिए और उल्‍टा बाजार में महंगाई आ जाएगी. बस, यही गणित है जो आरबीआई गवर्नर को डरा देता है. यही कारण है कि गवर्नर बार-बार यह बात दोहराते हैं कि जब तक महंगाई दर नीचे नहीं आती है यानी तय दायरे के भीतर, तब तक ब्‍याज दरों में कटौती संभव नहीं है.

Tags: Business news, RBI Governor, Rbi policy



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