भारतीय सिनेमा के इतिहास की बात की जाएगी तो वो कपूर खानदान के बिना अधूरी होगी। हिंदी सिनेमा में कपूर खानदान एकलौता ऐसा परिवार है जिसकी चार पीढ़ियां फिल्मों से जुड़ी रहीं। इसे भारतीय सिनेमा का पहला फिल्मी परिवार भी कहा गया है। इस परिवार ने कई सुपरस्टार दिए, कई दमदार एक्टर दिए, कई निर्देशक दिए, कैरेक्टर आर्टिस्ट भी दिए तो कई अभिनेत्रियां भी दीं। बॉलीवुड में कई परिवार आए और गए लेकिन कोई भी कपूर खानदान की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पैर जमाता नजर नहीं आया। ये परिवार बॉलीवुड का सबसे प्रभावी परिवार भी बन गया। पिछले आठ दशकों से भारतीय पॉप संस्कृति में इस फैमिली का खास योगदान है। आज हम आपको इसी परिवार के एक ऐसे सदस्य के बारे में बताएंगे जिसने कम उम्र में ही प्रसिद्धि और सफलता हासिल की, लेकिन इसके बावजूद गुमनामी में खो गया। ये शख्स हैं त्रिलोक कपूर, जो पहले कपूर हीरो थे, जो इंडस्ट्री के टॉप स्टार बने और फिर गुमनामी के अंधेरे में खो गए।
कौन था कपूर खानदान का पहला हीरो
पृथ्वीराज कपूर 1920 के दशक में अपने परिवार से फिल्मों में प्रवेश करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके छोटे भाई त्रिलोक ने साल 1933 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा। वो अपने भाई के दिखाए रासते पर चले। 21 वर्षीय त्रिलोक ने ‘चार दरवेश’ में मुख्य भूमिका के साथ अपनी शुरुआत की। उसी साल ‘सीता’ में अपने भाई पृथ्वीराज के साथ भी अभिनय किया। पृथ्वीराज ने ज्यादातर खलनायक और सहायक किरदार निभाए, लेकिन त्रिलोक फिल्मों में हीरो बने। 1930 के दशक के अंत तक उन्होंने खुद को हिंदी सिनेमा के शीर्ष सितारों में से एक के रूप में स्थापित कर लिया था।
शूटिंग करते त्रिलोक कपूर।
त्रिलोक ने दी थीं रणबीर से भी ज्यादा हिट फिल्में
1930 और 40 के दशक में वे हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े नामों में से एक थे और केएल सहगल, अशोक कुमार, करण दीवान और पृथ्वीराज के साथ सबसे ज्यादा पैसे लेने वाले सितारों में से एक बन गए थे। साल 1947 में उन्होंने नूरजहां के साथ ‘मिर्जा साहिबान’ जैसी हिट फिल्म करके खुद को इंडस्ट्री के सबसे बेहतरीन हीरो के रूप में जगह दिलाई। त्रिलोक के करियर का सबसे सफल दौर 50 के दशक में आया जब उन्होंने आध्यात्मिक और पौराणिक शैली की कई हिट फिल्में कीं। उन्होंने 30 हिट फिल्में दीं जो राज कपूर और रणबीर कपूर के करियर ग्राफ करीब दोगुनी हैं, जहां राज कपूर ने अबतक 17 हिट दी तो वहीं रणबीर ने अब तक सिर्फ 11 हिट फिल्में ही दी हैं।
पौराणिक फिल्मों में ज्यादा नजर आने लगे त्रिलोक
धीरे-धीरे त्रिलोक छोटे बजट की पौराणिक फिल्मों में ही नजर आने लगे। ऐसे में वो मुख्यधारा से कट गए, यही वजह रही कि वो कभी मेन स्ट्रीम के हीरो नहीं बन पाए। हिट फिल्में देने के बाद भी अशोक कुमार जैसे अपने समकालीनों की तरह मेकर्स उन पर कॉमर्शियल फिल्मों के लिए विश्वास नहीं जता पाते थे। 1960 के दशक के बाद त्रिलोक कपूर ने चरित्र भूमिकाएं और छोटी-छोटी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। उन्होंने ‘जय संतोषी मां’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘दोस्ताना’ और ‘गंगा जमुना सरस्वती’ जैसी हिट फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाईं। 1988 में 76 साल की उम्र में उनका निधन हो गया