फसलों की 109 उन्नत किस्मों को देश को समर्पित किया गया है. ‘ड्यूरम’ गेहूं की इस नई प्रजाति से रोटी और पास्ता दोनों दिखेगा. इसे आईसीएआर इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र में विकसित किया गया.
नई दिल्ली. देश में मौसम का चक्र बदलने और तापमान ज्यादा रहने की वजह से गेहूं उत्पादन पर बड़ा असर पड़ता है. लेकिन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) ने एक नई किस्म के गेहूं को विकसित किया है. यह किसानों की तमाम सस्याओं को हल कर देगा. ‘पूसा गेहूं गौरव’ नाम से विकसित किए गए इस उन्नत किस्म के गेहूं की विदेशों में भारी मांग है. इसकी खासियत इतनी है कि इसे ग्लोबल मार्केट में काफी पसंद किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में ही फसलों की 109 उन्नत किस्मों को देश को समर्पित किया था. इसमें शामिल ‘पूसा गेहूं गौरव’ (एचआई 8840) देशी-विदेशी पकवानों के पैमानों पर खरा उतरा है. ‘ड्यूरम’ गेहूं की इस नई प्रजाति को कुछ इस तरह विकसित किया गया है कि इससे उम्दा चपाती और पास्ता, दोनों बनाया जा सकता है. इसे आईसीएआर इंदौर स्थित क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जंग बहादुर सिंह ने विकसित किया है.
रोटियां ज्यादा मुलायम
प्रधान वैज्ञानिक ने कहा कि ‘ड्यूरम’ गेहूं की आम प्रजातियों के आटे से चपाती बनाने में दिक्कत पेश आती है लेकिन ‘पूसा गेहूं गौरव’ के साथ यह समस्या नहीं है. इसके आटे में पानी सोखने की क्षमता ड्यूरम गेहूं की आम प्रजातियों के मुकाबले ज्यादा है. इस कारण इसकी रोटियां मुलायम बनती हैं. इसमें येलो पिगमेंट के ऊंचे स्तर और इसके कड़े दाने के कारण इससे बेहतरीन गुणवत्ता का पास्ता भी बनाया जा सकता है.
सूखा-गर्मी सब झेलेगा
‘पूसा गेहूं गौरव’ में प्रोटीन (12 प्रतिशत), आयरन (38.5 पीपीएम) और जिंक (41.1 पीपीएम) जैसे पोषक तत्व समाए हैं. गेहूं की यह प्रजाति जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के मद्देजर विकसित की गई है और सामान्य से कम सिंचाई और अधिक तापमान पर भी बढ़िया पैदावार देने में सक्षम है. सिंचाई की सीमित सुविधाओं में इस प्रजाति की औसत उत्पादन क्षमता 30.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं, इससे 39.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की अधिकतम पैदावार ली जा सकती है. ‘ड्यूरम’ गेहूं को आम बोलचाल में ‘मालवी’ या ‘कठिया’ गेहूं कहा जाता है.
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FIRST PUBLISHED : August 14, 2024, 18:32 IST