कोडाईकनाल में एक आकर्षक बड़ा बंगला है, जिसका खास रिश्ता शेख अब्दुल्ला से है40 साल पहले अब इस बंगले को दिया गया कोहिनूर शेख अब्दुल्ला बंगलाग्रेनाइट पत्थरों से बना ये बंगला अपने आपमें इलाके में एकदम अलग और सुंदर है
कश्मीर में चुनावों की घोषणा हो चुकी है. चुनावों के इस मौसम में अगर ये कहें कि तमिलनाडु का एक खूबसूरत कस्बा 50 सालों से लगातार शेख अब्दुल्ला को याद करता रहा है तो शायद उत्तर भारत के लोग हैरानी से भर उठें. ये खूबसूरत हिल कस्बा है कोडाईकनाल. समुद्र से करीब 7300 मीटर ऊंचाई पर अंग्रेजों द्वारा बसाया हुआ. खुशगवार मौसम के साथ सैलानियों की पसंदीदा सैरगाह. इस छोटे से कस्बे का भला जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री और उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला से क्या रिश्ता. यहां की एक खूबसूरत सरकारी इमारत का नाम आखिर उनके नाम पर क्यों.
कार चलाने वाले ड्राइवर से लेकर कोने के छोटे दुकानदार तक हर किसी को आप उनका नाम लेते हुए खास कोहिनूर बंगले की बात करते सुन सकते हैं. श्रीनगर और कोडाईकनाल देश के दो धुर इलाके हैं. करीब 3500 किलोमीटर के फासले की दो जगहें. एक बिल्कुल उत्तर और दूसरी बिल्कुल दक्षिण में.
ये इत्तफाक है कि कोडाईकनाल में कई किलोमीटर की पैदल वाक करते हुए मैने अपने होटल के करीब एक ऐसी खूबसूरत बिल्डिंग देखी. जो इस पूरे इलाके में अनूठी ही है. ऐसी बिल्डिंग जिसका आर्किटैक्ट खास और भव्य लगता है.
कोडाईकनाल का कोहिनूर बंगला पहाड़ी स्टाइल में बनाया गया खूबसूरत भवन है.
ग्रे ग्रेफाइट के पत्थरों से बनी बिल्डिंग. ड्राइव-वे में एक कार खड़ी है. छत लाल रंग की. दोमंजिला भवन. खूबसूरत स्टाइल वाली खिड़कियां. बिल्डिंग के चारों ओर काफी खालीजगह. बड़ा सा लान. पीछे केयरटेकर और सर्वेंट्स क्वार्ट्स. आमतौर पर शांत इलाका है. सामने 100 साल से ज्यादा पुरान प्रेजेंटेशन कान्वेंट स्कूल का लंबा चौड़ा अहाता. आसपास चीड़ और यूकेलिप्टस के ऊंचे पेड़. बरबस उग आए फूलों की झाड़ियां. कुछ होमस्टे. कुछ शानदार घर. एक जैन मंदिर.
शेख अब्दुल्ला दो साल कोडाईकनाल के इस बंगले में नजरबंद रखे गए थे. हालांकि उनको कस्बे में बाहर निकलने और सुरक्षा के बीच आने जाने की छूट थी.
कोहिनूर बंगला क्यों खास है
हवा काफी सुखदायी है. वेस्टर्न घाट पर बसा कोडईकनाल अंग्रेजों को इसलिए भाया क्योंकि यहां की हवा और नेचर में हेल्थ को बेहतर रखने वाली वजहें मौजूद थीं. खैर अब आते हैं उस बंगले पर जिसे कोहिनूर शेख अब्दुल्ला बंगला कहा जाता है. जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला को जुलाई 1965 से जून 1967 तक कोडईकनाल में नजरबंद रखा गया. वह यहां दो साल रहे.
बंगले के अंदर लकड़ी की बनीं खूबसूरत सीढ़ियां और दीर्घाएं.
तब अब्दुल्ला कोड़ाईकनाल के खास कैदी थे
तब देश के पूर्व मुख्य आयुक्त टीएन शेषन यहां के कलेक्टर थे. जब शेख अब्दुल्ला को कोड़ाईकनाल भेजा गया तो शेषन को हिदायत दी गई कि अब्दुल्ला का ख्याल रखा जाए. हालांकि इस दौरान शेख अब्दुल्ला और शेषन के बीच नोंक-झोंक के भी कई वाकए हुए. जिसका टीएन शेषन ने अपनी बॉयोग्राफी थ्रो “द ब्रोकन ग्लास” में दिलचस्प तरीके से जिक्र किया.
अब्दुल्ला, जिन्हें शेर-ए-कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है. उन पर 1965 में देश के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया गया. उन्हें जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करके जेल भेज दिया गया. तब उन्हें मदुरै से लगभग 120 किलोमीटर दूर खूबसूरत हिल स्टेशन कोडाईकनाल लाया गया, तब शेषन यहां युवा कलेक्टर के रूप में काम कर रहे थे.
इस तरह यहां शिफ्ट हुए
हालांकि शेषन और अब्दुल्ला के बीच विवाद भी हुआ. विवाद तब शुरू हुआ जब उन्हें पहले ऊटी से ले जाया गया, जहां अब्दुल्ला ने एक विदेशी संवाददाता को इंटरव्यू दिया था, जिससे इंदिरा सरकार को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. तब शेषन ने अब्दुल्ला को कोडईकनाल के ट्रैवलर्स हाउस में ठहराने की कोशिश की, जो एक सरकारी संपत्ति थी. जिसमें जल्दी-जल्दी मरम्मत, सफेदी आदि का काम करवाया था.
शेख ने यहां रहने से साफ मना कर दिया, कोई भी इंसान यहां कैसे रह सकता है? ऐसे कमरे में तो घोड़े ही रह सकते हैं.” इसके बाद शेषन ने उन्हें कोहिनूर बंगले में शिफ्ट कर दिया, जो एक सरकारी सर्किट हाउस था. मूल रूप से हैदराबाद के नवाब अली यावर जंग का था.
शेख अब्दुल्ला को कुछ हद तक बंगले से बाहर कोडाईकनाल में सुरक्षा के बीच घूमने की इजाजत थी. तब अब्दुल्ला परिवार यहीं रहता रहा. अक्सर शेख अब्दुल्ला को यहां लेक साइड पर सुरक्षा के बीच घूमते देखा जा सकता था. तब इस खास कैदी का नाम यहां हर किसी की जुबान पर रहता था.
वर्ष 1984 में जब तमिलनाडु सरकार ने इस बंगले का नाम बदला तो इस मौके पर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. (photo by Sanjay srivastava)
तब इस कोहिनूर बंगला का नाम बदला गया
इस लंबे-चौड़े बंगले में शेख अब्दुल्ला के बाद कोई खास कैदी नहीं आया. अलबत्ता फारुक अब्दुल्ला यहां जरूर आए और इसमें रुके भी. इसे 1984 में तमिलनाडु सरकार ने एक खास कार्यक्रम करके कोहिनूर बंगला का नाम कोहिनूर शेख अब्दुल्ला बंगला करके इसे सरकारी वीआईपी गेस्ट हाउस में बदल दिया. उस कार्यक्रम में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन और कश्मीर के तब के सीएम फारुख अब्दुल्ला मौजूद थे.
इस बंगले में अंदर लकड़ी का काफी काम है. लकड़ी की सुंदर सीढ़ियां और दीर्घाएं हैं. इमारत की पोर्टिको के पास संगमरमर की पट्टिका में शेख अब्दुल्ला को याद करते हुए बताया गया कि वो यहां कितने रहे.
40 साल पहले वर्ष 1984 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन ने इस बंगले का नाम कोहिनूर शेख अब्दुल्ला बंगला कर दिया.
स्कूल में फिल्म स्क्रीनिंग देखने आते थे
साउथ इंडिया के जाने माने अभिनेता जैमिनी गणेशन की बेटी जो पत्रकार और लेखिका हैं, उन्होंने भी अपने एक ब्लॉग में इस बारे में लिखती हैं कि प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट, कोडईकनाल में नौवीं कक्षा के छात्र के रूप में, मैं और मेरे दोस्त अक्सर शनिवार की शाम को स्कूल हॉल में शेख अब्दुल्ला और उनके परिवार के साथ बैठते थे, जब नन हमारे लिए एक फिल्म स्क्रीनिंग का आयोजन करती थीं. वह भारी सुरक्षा के बीच अपने परिवार के साथ फिल्म देखने आते थे. कभी-कभी वह छात्रों से बातचीत करते और कभी चुप रहते.
ये बंगला खासा बड़ा है और आगे पीछे खूबसूरत लान के साथ सर्वेंट्स क्वार्ट्स हैं. (photo sanjay srivastava)
खिड़की से उन्हें कुछ लिखते देखा जाता था
अब्दुल्ला को खिड़की के पास अपनी डेस्क पर लिखते हुए देखा जाता था. उनके पास लाल सेबों का एक कटोरा रखा होता था. जो खासतौर पर उनके लिए कश्मीर से भेजे जाते थे. को़डाईकनाल में हर कोई उन्हें राजनीतिक रूप से ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के तौर पर जानता था, जो अस्थायी रूप से वहां आए हैं.
तो शेख अब्दुल्ला यहां के लिए यादगार के तौर पर दर्ज हो चुके हैं
शेख अब्दुल्ला हर रोज़ कोडाई झील के चारों ओर झील मार्ग पर करीब 05 किलोमीटर की वाक करते थे, तब वह पुलिस सुरक्षा में होते थे. उनके साथ कभी-कभी उनकी पत्नी या बेटी या दोनों ही उनके साथ चलती थीं. शेख अब्दुल्ला के उन दो सालों को कस्बे ने ऐसी घटना बना दिया जो आज भी वहां के लिए एक खास बात बन चुकी है. जिसकी चर्चा तकरीबन रोज ही होती है. खासकर जब सैलानियों को यहां के लोग इलाके के बारे में कुछ बता रहे होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 21, 2024, 10:15 IST