इतने कम बजट में बनी थी इंडिया की बेस्ट सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म, मेकर्स के पास वैनिटी वैन तक के लिए पैसे नहीं थे


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2012 में रिलीज हुई थी ये फिल्म

विद्या बालन ने 2005 में ‘परिणीता’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। इसके पहले तक वह टीवी की दुनिया का जाना-माना नाम थीं। विद्या बालन को अपनी बेहतरीन अदाकारी, हंसमुख स्वभाव और काम को लेकर उनके डेडिकेशन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा विद्या कभी अपने कमिटमेंट से भी पीछे नहीं हटतीं और ऐसा हम नहीं बल्कि डायरेक्टर सुजॉय घोष कह रहे हैं। विद्या बालन ने सुजॉय घोष की ‘कहानी’ में लीड रोल प्ले किया था। इस फिल्म को भारतीय सिनेमा की बेस्ट सस्पेंस-थ्रिलर फिल्मों में गिना जाता है। इस बीच सुजॉय घोष ने इस फिल्म और विद्या बालन को लेकर कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।

बेहद टाइट था कहानी का बजट

सुजॉय घोष ने बताया कि 2012 में रिलीज हुई ‘कहानी’ का बजट इतना कम था कि उनके पास एक वैनिटी वैन की व्यवस्था के लिए भी पैसे नहीं थे। ऐसे में विद्या बालन को अपनी गाड़ी में ही कपड़े बदलने पड़ते थे। साल 2012 में आई ‘कहानी’ की कहानी ने लोगों को आखिर सीन तक कुर्सी से चिपके रहने पर मजबूर कर दिया था। इसे दर्शकों से जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला, लेकिन अब सुजॉय घोष ने खुलासा किया कि इस फिल्म का बजट इतना टाइट था कि उन्हें फूंक-फूंककर कदम रखने पड़ रहे थे। हालांकि, जैसे ही फिल्म रिलीज हुई मेकर्स मालामाल हो गए। 15 करोड़ के बजट में बनी कहानी लागत से करीब साढ़े तीन गुना कमाई कर गई।

इनोवा में कपड़े बदलती थीं एक्ट्रेस

कहानी के के डायरेक्टर सुजॉय घोष ने मैशेबल इंडिया के साथ बातचीत में इस फिल्म के मेकिंग को याद किया। उन्होंने कहा- ‘हमारा बजट इतना टाइट था कि हम वैनिटी वैन तक नहीं ला सके थे। हम शूटिंग को कुछ समय के लिए भी नहीं रोक सकते थे, क्योंकि हमारा बजट बहुत कम था। तो जब भी उन्हें (विद्या बालन) कपड़े बदलने होते थे तो वह अपनी कार में कपड़े बदल लेती थीं। सड़क के बीचों बीच हम उनकी इनोवा को काले रंग के कपड़े से ढक देते थे और वो कार के अंदर ही कपड़े बदल लेती थीं।’

वादे की पक्की हैं विद्या

‘कहानी’ से पहले सुजॉय घोष की लगातार तीन फ्लॉप रही थीं। उन्होंने इसे याद करते हुए कहा- ‘अलादीन असफल हो गई थी। ऐसे में विद्या बालन ‘कहानी’ करने से मना कर सकती थीं। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया। मैंने देखा है कि उस जनरेशन के एक्टर्स अमिताभ जी से लेकर खान साहब (शाहरुख खान) तक, जुबान के बहुत पक्के होते हैं। अगर उन्होंने एक बार कुछ करने का वादा कर दिया, तो वो करते हैं। विद्या भी उसी कैटेगरी में आती हैं।’

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