दिल्ली के सिख परिवार में जन्मीं मेनका गांधी (Maneka gandhi) की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई लॉरेंस स्कूल से हुई. फिर उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन की और जेएनयू भी गईं. मेनका ने कॉलेज के बाद मॉडलिंग में हाथ आजमाया और यही उनकी गांधी फैमिली में एंट्री की वजह बना. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय ने जब एक पत्रिका में मेनका की तस्वीर देखी तो पहली नजर में उनपर फिदा हो गए. संजय गांधी और मेनका की मुलाकात हुई. दोनों करीब आए और जुलाई 1974 में एंगेजमेंट कर ली. दो महीने बाद सितंबर 1974 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए.
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) और मेनका का साथ करीब 6 साल का रहा. जून 1980 में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई. संजय के जाने से इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को गहरा धक्का लगा. उन्होंने संजय की जगह लेने के लिए अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को आगे किया. हालांकि कांग्रेस के तमाम नेता संजय की पत्नी मेनका गांधी को उनका वारिस मान रहे थे. खुद मेनका को भी लग रहा था कि अपने पति की विरासत की असली हकदार वही हैं.
लखनऊ की वो सभा
संजय गांधी के वफादार रहे तमाम कांग्रेसी नेता मेनका गांधी के पीछे खड़े थे और उन्हें समर्थन दे रहे थे. इसमें उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता अकबर अहमद डंपी भी शामिल थे. मार्च 1982 में डंपी ने लखनऊ में एक सभा का आयोजन किया. जिसमें संजय गांधी की विरासत को याद किया जाना था. एक तरीके से इस सभा का मकसद शक्ति प्रदर्शन करना और यह जताना था कि संजय की विरासत की हकदार मेनका गांधी ही हैं. मेनका बाकायदे इस सभा में आने का न्योता भेजा गया.
इंदिरा गांधी की बहू को नसीहत
स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो अपनी किताब ‘द रेड सारी’ में लिखते हैं कि इंदिरा गांधी कोई डंपी की उस सभा की भनक लग गई. ठीक उसी समय उन्हें लंदन जाना था. इंदिरा ने बहू मेनका को बुलाकर लखनऊ की सभा में न जाने की सख़्त नसीहत दी. हालांकि मेनका ने उनकी बात नहीं मानी. सभा में गईं और वहां धारदार भाषण दिया. इंदिरा भारत लौटीं तो उन्हें मेनका के सभा में जाने का पता चला है. वह आग बबूला हो गईं. उन्हें लग रहा था कि मेनका ने उनका अपमान किया है. इंदिरा ने पहले अपनी बहू मेनका को एक चिट्ठी लिखी. जिसमें यह भी लिखा कि वह कभी नहीं चाहती थीं कि संजय गांधी और उनकी शादी हो.
इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार के दौरान मेनका अपने बेटे वरुण के साथ.
जब मेनका का इंदिरा से हुआ सामना
जेवियर मोरो (Javier Moro) अपनी किताब में लिखते हैं कि लखनऊ की सभा के बाद 28 मार्च 1982 की सुबह पहली बार मेनका गांधी सफदरजंग वाले मकान में पहुंचीं तो उनका इंदिरा गांधी से सामना हुआ. मेनका ने अपनी सास से नमस्ते किया, लेकिन उन्होंने तल्खी से कहा- बाद में बात करेंगे. इसके बाद मेनका गांधी अपने कमरे में चली गईं. थोड़ी देर बाद एक नौकर आया और कहा कि आपको मैडम बुला रही हैं. मेनका गांधी जब नीचे आईं तो वहां इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के अलावा धीरेंद्र ब्रह्मचारी और उनके सचिव आरके धवन भी मौजूद थे.
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने मेनका की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा, ‘अभी इसी वक्त घर से निकल जाओ.. मैंने तुमको मना किया था कि लखनऊ की सभा में मत जाना, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी. अभी अपनी मां के घर चली जाओ…’
एक अटैची लेकर घर से निकलीं मेनका
मोरो लिखते हैं कि इसके बाद मेनका गांधी ने अपनी बहन अंबिका को फोन किया. अंबिका के जरिए मेनका और उनकी सास के बीच लड़ाई की खबर मीडिया तक पहुंच गई. रात 9 बजते-बजते इंदिरा के घर के बाहर पत्रकारों की भीड़ जमा हो गई. रात 9:30 बजे के करीब मेनका की बहन अंबिका भी वहां पहुंचीं. वह अपनी बहन से बात कर रही थीं कि इंदिरा फिर कमरे में आईं और दोबारा घर से निकलने को कहा. इस बार अंबिका ने उनकी बात काटते हुए कहा कि उनकी बहन कहीं नहीं जाएगी, यह घर उसका भी है. इंदिरा गांधी ने गुस्से में जवाब दिया- नहीं, यह घर भारत के प्रधानमंत्री का है.
इसके बाद मेनका गांधी अपना सामान पैक करने लगीं. उधर, इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य सचिव पीसी एलेक्जेंडर को बुलवाया. इंदिरा चाहती थीं कि उनका पोता वरुण गांधी उनके पास ही रहे, लेकिन एलेक्जेंडर और दूसरे लोगों ने समझाया कि यह कानूनी तौर पर संभव नहीं है. इसके बाद रात करीब 11 बजे मेनका गांधी हाथ में एक सूटकेस थामे गाड़ी पर बैठीं और अपनी मां के घर रवाना हो गईं.
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FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 13:45 IST